भारत में पेंशन प्रणाली: सभी कर्मचारियों से निवेदन है कि इस लेख को पूरा पढें और ज्यादा से ज्यादा शेयर करें:

भारत में पेंशन प्रणाली: सभी कर्मचारियों से निवेदन है कि इस लेख को पूरा पढें और ज्यादा से ज्यादा शेयर करें:

भारत में पेंशन  प्रणाली एक सदी से भी अधिक समय से प्रचलित है।
आजादी से पहले, ब्रिटिश सरकार ने सरकारी कर्मचारियों  के लिए पेंशन  नियम पेश करके  उसे वैधानिक बना दिया था।
1982 में सुप्रीमकोर्ट  ने एक ऐतिहासिक निर्णय दिया जिसमे  घोषित किया गया कि

 ‘‘भारतीय संविधान के अनुसार सरकार पेंशनभोगियों को सामाजिक एवं आर्थिक संरक्षण देने के लिए बाध्य है और सरकारी सेवा से सेवानिवृतों के लिए पेंशन उनका मौलिक अधिकार है। पेंशन न तो उपहार है और ना ही नियोक्ता की सद्भावना या मेहरबानी है। यह एक अनुग्रह भुगतान भी नहीं है बल्कि उनकी पूर्व में की गयी सेवाओं का भुगतान है। यह एक सामाजिक कल्याणकारी मानदण्ड है, जिसके तहत उन लोगों को सामाजिक-आर्थिक न्याय देना है,जिन्होंने  अपनी पूरी जवानी नियोक्ताओं के लिए निरंतर कड़ी मेहनत करने में इस भरोसे  में बितायी है कि उनके बुढ़ापे  में उन्हे बेसहारा  नहीं  छोड़ दिया जाएगा’’।

1980 के दशक में  भूमंडलीयकरण नीतियों  (globalization ) के  आगमन के साथ ही साथ ‘पेंशन  सुधारों  की भी शुरुआत हुई।

पेंशन  सुधारों (Pension Reforms) की आवश्यकता पर जोर देते हुए आई.एम.एफ. और  विश्व बैंक ने कई रिपार्टे  आरै लेख प्रकाशित करना शुरु किया।

भारत में पेंशन  के क्षेत्र में होने वाले सुधारों  के बारे में रिपार्टे  प्रकाशित करना शुरु कर दिया। 2001 में *‘‘भारत में पेंशन  सुधारों पर आई.एम.एफ. का कार्य – पत्र’’* और विश्व बैंक भारत की विशिष्ट रिपोर्ट  ‘‘भारत – वृधावस्था में आय सुरक्षा की चुनौती प्रकाशित  की गई।

इन रिपोर्ट  में यह तर्क दिया गया कि सरकारों द्वारा किये गए पेंशन दायित्वों  या किए गए वायदों  से सरकारी वित्त पर दबाव डालेगा अतः  यह अस्थिर हो जायेगा।

अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में जब पूर्व एनडीए सरकार सत्ता में आयी, वह भी नवउदारवादी नीतियों  के प्रति कटिबद्ध थी, स्वेच्छा  से आई.एम.एफ. और विश्व बैंक के निर्देशों  के अनुसार पेंशन ‘सुधारों ‘ को प्रस्तुत किया।

2001 में उसने  तथाकथित  पेंशन ‘सुधारों ‘  का अध्ययन आरै अनुशंसा करने के लिए कर्नाटक के पूर्व मुख्य सचिव की अध्यक्षता में ‘भट्टाचार्य समिति’ नियुक्त की।

उसने पुरानी पारम्परिक सुनिश्चित पेंशन  हितलाभों से कर्मचारियों को वंचित करने की भूमिका  तैयार की।

भट्टाचार्य समिति की सिफारिशों को लागू करते  हुए एनडीए सरकार ने नयी पेंशन  योजना  को पेश  किया, जिसे सुनिश्चित अंशदायी योजना बताया और कहा कि 1.1.2004 के बाद जो भी कर्मचारी नौकरी पर लगा है, उस पर यह लागू होगी।

2004 में सत्ता में आयी कांग्रेसनीत यूपीए सरकार ने भी उन सुधारों  को जारी रखते हुए एन.पी.एस. को वैधानिक बनाने के लिए एक अध्यादेश जारी किया। लेकिन अन्य दलों, जिनके समर्थन पर इसका अस्तित्व टिका था, के कड़े  विरोध के कारण यूपीए -1 सरकार इस पेंशन  बिल को संसद में पारित नहीं  करा पायी।

बाद में जब यूपीए-2 सत्ता में आयी तब ‘पेंशन  फंड  रेग्यूलेटरी एवम डेवल्पमेटं आथरिटी’ (पी.एफ.आर.डी.ए.) का बिल संसद में पारित हो  गया। विपक्षी दल होने के बावजूद भाजपा ने इसका समर्थन किया। यह इस तथ्य को स्पष्ट रूप से सामने लाता है कि नवउदारवादी नीतियों के तहत, जनता के सामाजिक सुरक्षा और कल्याणकारी उपायों  में कटौती करने और देशी-विदेशी कोर्पोरेट्स  को धन हस्तांतरण  के मामले में अ  और ब में कोई अंतर नहीं है।

एनपीएस न केवल केन्द्रीय और राज्य सरकार के नए कर्मचारियों  पर लागू है बल्कि सावर्जनिक क्षेत्र तथा स्वायत्त निकायों  में लगभग सभी नये कर्मचारियों  पर भी लागू हो रहा है।

 *एनपीएस क्या है?*

इस नयी योगदान आधारित पेंशन  योजना के अनुसार कर्मचारियों  के वेतन में से हर महीने मूल वेतन मँहगाई भत्ता (डीए) का 10% काटकर कर्मचारी के पेंशन  खाते में जमा किया जाता है। उसके समान राशि नियोक्ता की ओर से भी जमा की जाती है। कुल राशि पी.एफ.आर.डी.ए. अधिनियम के तहत पेंशन फंड में जमा की जाती है।

इसमें योगदान राशि तो परिभाषित की गई है लेकिन सेवानिवृत के बाद कर्मचारी को मिलने वाली पेंशन  राशि को परिभाषित नहीं किया गया है।
पेंशन फंड  में जमा धन शेयर  बाजार में निवेश किया जा रहा है। पी.एफ.आर.डी.ए. अधिनियम के अनुसार ग्राहकों द्वारा खरीदे जाने वाले शेयर के अन्तर्निहित कोई परोक्ष या सुस्पष्ट आश्वासन नहीं होंगे ।

इस प्रकार पेंशन फंड में जमा राशि बढ़ भी सकती है या घट भी सकती है। यह शेयर बाजार के उतार-चढ़ाव पर आधारित है।

60 वर्ष की आयु में सेवानिवृत होने के बाद पेंशन  खाते  में संचित राशि का 60% टेक्स काटकर जो वर्तमान में तीस प्रतिशत है ,वापस मिल जाता है और बाकी 40% बीमा वार्षिक
योजना  में जमा की जाती है
 बीमा वार्षिक योजना से प्राप्त मासिक राशि ही मासिक पेंशन है।
इस प्रकार  देखा जा सकता है कि पेंशन  फंड  में जमा राशि में बढ़ोतरी शेयर बाजार की अनियमिताओं  पर निर्भर करती है।
यदि शेयर बाजार में गिरावट आई है, जैसा कि 2008 के वैश्विक वित्तीय संकट के दौरान हुआ था, तो पेंशन  फंड  में पूरी राशि गायब हो सकती है।

उस स्थिति में  कर्मचारियों  को कोई पेंशन  नहीं मिल सकेगी। शेयर बाजार के उतार-चढ़ाव को न तो कर्मचारी नियंत्रित कर सकता है और ना ही कोई भविष्यवाणी की जा सकती है, जो एनपीएस के तहत कवर किए गए कर्मचारियों  की पेंशन  के भविष्य को प्रभावित करेगी।

पेंशन की अनिश्चितता और रिटायर्ड जिंदगी कर्मचारी के सर पर संकट के बादल मंडराने लगते हैं। अगर शेयर बाजार स्थिर भी हो तब भी 40% बीमा वार्षिक योजना की राशि कर्मचारी के अन्तिम वेतन  के 50% के समान नहीं हो सकती, जैसा कि पुरानी पेंशन  स्कीम में था।

पी.एफ.आर.डी.ए. अधिनियम की धारा 12(5) के अनुसार जो कर्मचारी और पेंशन भोगी एनपीएस की परिधि में नहीं  आते हैं उन्हें भी सरकार राजपत्र में अधिसूचित करके  अधिनियम के दायरे में ला सकती है।

इस तरह नवीन अंशदायी पेंशन योजना  NPS/GPF कर्मचारियों  और पेंशनरों के सिर पर लटकने वाली खतरे की तलवार है।

लाभान्वित कौन है?
इन पेंशन  सुधारों जो की पेंशन विनाश ही हैं  से किसको लाभ होगा?
जैसे कि हर नवउदारवादी सुधारों  से अंततः लाभान्वित होने वाले देश-विदेशी कोर्पोरेट्स ही धनवान होते है।
कर्मचारियों  की तनख्वाह से बडी मात्रा में धनराशि को पेंशनफंड में एकत्रित करके, पेंशन फंड  मैनेजरों  द्वारा शेयर बाजार में लगाया जाता है। इस धन राशि का इस्तेमाल बहुराष्ट्रीय निगमों द्वारा अपने मुनाफों  को कई गुना करने के लिए होता है।
नये भर्ती हुए कर्मचारियों  से कटोती  की गयी धनराशि और नियोक्ता की हिस्सेदारी को पेंशन फडं में जमा किया जाता है जो 30-35 वर्षों  तक अर्थात् 60 वर्ष की आयु तक पेंशन फंड और शेयर बाजार में रहती है।
 इस 35 वर्ष की लम्बी अवधि के लिए करोड़ों  और करोड़ों  रुपया, शेयर  बाजार को नियंत्रित करने  वाले बड़े बहुराष्ट्रीय कोर्पोरेशनो की मनमानी पर रहता है।
अंततः  शिकार तो गरीब मजबूर कर्मचारी / पेंशनभोगी होता है।
NMOPS सहित देश के कई संगठन जिनका निर्माण केवल पुरानी पेंशन बहाली की एक मात्र मांग के लिए हुआ है। 26 नवम्बर को दिल्ली में हुई विशाल कर्मचारी रैली ने भारत सरकार व राज्य सरकारों की नींद उड़ा दी है और सरकार ने संशोधन के नाम पर कर्मचारियों को भ्रमित करने का प्रयास शुरू कर दिया है लेकिन अब हम पुरानी पेंशन योजना से कम कुछ भी स्वीकार करने वाले नहीं है।

  एनपीएस के खिलाफ संघर्ष की तीव्रता के लिए चैतन्यपूर्ण एवं उद्देश्यपूर्ण परिस्थितियाँ उभर रही हैं।
  यहां तक कि 7वें  केन्द्रीय  वेतन आयोग के अध्यक्ष और सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश अशोक कुमार माथुर को यह इंगित करना पड़ा कि ‘‘01-01-2004 को या उसके बाद नियुक्त लगभग सरकारी कर्मचारीगण नई पेंशन योजना से नाखुश था। सरकार को उनकी शिकायत पर ध्यान देना चाहिए’’।

और देशी-विदेशी कोर्पोरेट्स फायदों के लिए कर्मचारियों  के धन को सट्टेबाज शेयर बाजार में लगाने के खिलाफ सरकार को चेतावनी देने के वास्ते है।
बड़ी मेहनत से हासिल कर्मचारियों के विशेष  सामाजिक सुरक्षा लाभों पर आघात व अन्याय को और नहीं सहा जा सकता।
उस नवउदारवादी व्यवस्था को पलटने की मांग करने के लिए है जो जनता के धन और सार्वजनिक सम्पत्तियों  केवल कुछ लोगों के हाथों  में स्थानान्तरित करती है।
एनपीएस के खिलाफ अभियान और संघर्ष जारी रहा है। अब केंद्रीय और राज्य सरकारों सार्वजनिक क्षेत्र एवं स्वायत्त निकायों के कुल कर्मचारियों का लगभग 50% एनपीएस में कवर हो गया है जिनकी संख्या आज उन्सठ लाख है।

  वे एनपीएस के खिलाफ अधीर और उत्तेजित हैं।
यह लडाई हम सब जीतेंगे जरुर लेकिन यह सब आप की भागीदारी पर निर्भर  करेगा कि लडाई कितनी लम्बी चलेगी।
ज्यादा लम्बी लडाई लड़ना ops के लिए घातक है!

आइये इस लेख को ज्यादा से ज्यादा प्रसारित करें!
*NMOPS /FANPSR /WRECMOPS*

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