संविधान के 103वें संशोधन में अनुच्छेद 15(6) के तहत विशेष प्रावधान की अनुमति है। इसमें शैक्षणिक संस्थानों (निजी भी शामिल) में 10 फीसदी तक ईडब्ल्यूएस कोटा देने की बात शामिल है।
10 फीसदी ईडब्ल्यूएस (आर्थिक रूप से कमजोर तबके के लिए) कोटा अभी सिर्फ सरकार द्वारा संचालित शैक्षणिक संस्थानों में लागू किया जाएगा। निजी क्षेत्र में इसे अमल में लाए जाने को लेकर एक पेंच फंस गया है। दरअसल, 124वां संविधान संशोधन बिल पारित होने के बाद भी मौजूदा नियम व कानून निजी शैक्षणिक संस्थानों में पूरी तरह से आरक्षण को मंजूरी नहीं देते हैं। सरकार में सूत्रों के हवाले से ‘ईटी’ की रिपोर्ट में बताया गया कि निजी शैक्षणिक संस्थाओं में आरक्षण लागू करने को लेकर मामला विचाराधीन है। 2011 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इससे जुड़ी याचिका खारिज कर दी थी, जिसके बाद यह मामला केंद्र की अपील पर सुप्रीम कोर्ट पहुंचा।
सूत्रों के मुताबिक, मानव संसाधन विकास मंत्रालय निजी क्षेत्र में कोटा संबंधी योजना लाने में किसी प्रकार की जल्दबादी नहीं करेगा। फिलहाल वह यह कोटा केवल सरकारी शैक्षणिक संस्थानों में लागू करेगा, जिसे आगामी 2019-20 के शैक्षणिक वर्ष से लागू किया जा सकता है। वैसे संयोग है कि संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) और राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) ने अतिरिक्त आरक्षण लाने के लिए समान प्रक्रिया अपनाई थी।
संविधान के 103वें संशोधन में अनुच्छेद 15(6) आता है, जिसके तहत विशेष प्रावधान की अनुमति है। इसमें शैक्षणिक संस्थानों (निजी भी शामिल) में 10 फीसदी तक ईडब्ल्यूएस कोटा देने की बात है। अनुच्छेद 15 (6), 15(5) का प्रतिनिधित्व करता है, जिसे 2006 में यूपीए-1 ओबीसी वर्ग को 27 फीसदी आरक्षण देने के लिए 93वें संविधान संशोधन के जरिए लाई थी।
फरवरी 2011 में सुधा तिवारी बनाम यूनियन ऑफ इंडिया के मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने संविधान (93वें संशोधन) अधिनियम 2005 को सही ठहराया था, जिसके तहत गैर सहायता प्राप्त संस्थानों में आरक्षण की व्यवस्था होती है, जो कि संविधान के मूल ढांचे के विपरीत है। ऐसा ही अशोक कुमार ठाकुर बनाम यूनियन ऑफ इंडिया (2008) में भी ठहराया जा चुका है। आगे केंद्र सरकार ने हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की, जिसके बाद यह मामला विचाराधीन है। केंद्र इसी वजह से निजी शैक्षणिक संस्थानों में कोई अन्य कोटा नहीं लागू कर सका।