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PhD : UGC का तोहफा, नौकरी के चलते नहीं कर पा रहे हैं पीएचडी तो यह खबर आपके काम की

PhD : UGC का तोहफा, नौकरी के चलते नहीं कर पा रहे हैं पीएचडी तो यह खबर आपके काम की

यूजीसी की काउंसिल बैठक में यूजीसी रेगुलेशन (मिनिमम स्टैंडर्ड एंड प्रोसीजर फॉर अवार्ड ऑफ पीएचडी) 2022 के ड्राफ्ट का प्रस्ताव पास हो गया है। इसके अलावा यदि पीएचडी की नेट और जेआरएफ से भरी जाने वाली 60 फीसदी सीटें खाली रहती हैं तो 40 फीसदी सीट (विश्वविद्यालय या एनटीए की संयुक्त दाखिला प्रवेश परीक्षा से भरी जाने वाली ) में जोड़ने पर भी विचार चल रहा है। हालांकि, अभी तक इस पर कोई फैसला नहीं हुआ है।


विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की 13 जून को आयोजित यूजीसी काउंसिल बैठक में संशोधित यूजीसी पीएचडी रेगुलेशन-2022 को मंजूरी मिल गई है। आगामी शैक्षणिक सत्र 2022-23 से विश्वविद्यालयों, सीएसआईआर, आईसीएमआर, आईसीएआर आदि में इन्हीं नियमों के तहत पीएचडी में दाखिले होंगे। विश्वविद्यालयों और उच्च शिक्षण संस्थानों को अपनी पीएचडी सीटों का ब्योरा अधिकारिक वेबसाइट पर अपलोड करना जरूरी होगा। इसमें पीएचडी गाइड से लेकर विषय भी दर्शाने होंगे।

पीएचडी दाखिले के लिए 70 अंक लिखित और 30 अंक इंटरव्यू के रहेंगे। पीएचडी प्रोग्राम में कम से कम 12 क्रेडिट और अधिक से अधिक 16 क्रेडिट होने अनिवार्य रहेंगे। इसके अलावा रिटायरमेंट के बाद शिक्षक 70 वर्ष की आयु तक रिसर्च क्षेत्र में शिक्षक के रूप में दोबारा पैरेंट यूनिवर्सिटी में सेवाएं दे सकेंगे। इसमें अलग-अलग वर्ग निर्धारित किए गए हैं।


अब थीसिस पीर रिव्यू जर्नल में छपवा और पेटेंट करवा सकेंगे
नए रेगुलेशन में उम्मीदवार से लेकर विश्वविद्यालयों को आजादी दी गई है। अब पीएचडी उम्मीदवार अपनी थीसिस को पेटेंट करवा सकेंगे। इसके अलावा पीएचडी की रिसर्च फाइडिंग को क्वालिटी जर्नल यानी पीर रिव्यू जर्नल में छपवा सकते हैं।


पीएचडी वाइवा ऑनलाइन और ऑफलाइन का विकल्प


कोरोना काल में पहली बार पीएचडी वाइवा ऑनलाइन भी होगा। नए रेगुलेशन में पीएचडी वाइवा ऑनलाइन पर प्रमुखता से लागू करने को लिखा गया है। इसका मकसद छात्र और विश्वविद्यालय के समय और आर्थिक बचत करना है। इसमें पहले ऑनलाइन वाइवा देना होगा। यदि छात्र को किसी प्रकार की दिक्कत हो तो वाइवा ऑफलाइन दिया जा सकता है।


छह साल में पूरी करनी होगी पीएचडी


पीएचडी छह साल में पूरी करनी होगी। कोई भी संस्थान दो साल से अधिक अतिरिक्त समय नहीं देगा। वहीं, महिला उम्मीदवारों और दिव्यांगजनों (40 फीसदी से अधिक) को छह साल के अलावा दो साल अतिरिक्त समय देने का प्रावधान किया गया है।


दो संस्थान मिलकर भी करवा सकेंगे पीएचडी


अब नए नियमों में दो कॉलेज मिलकर अब डिग्री प्रोग्राम की पढ़ाई करवा सकते हैं। इसके लिए दोनों संस्थानों को समझौता करना होगा। इसमें कमेटी तय करेगी कि रिसर्च एरिया और सुपरवाइजर (गाइड) और को-सुपरवाइजर(दो गाइड) मिलकर कैसे पीएचडी करवाएंगे। इसमें कोई भी सुपरवाइजर तय नियमों के तहत ही पीएचडी स्कॉलर्स रख सकेगा।


प्रोफेसर, एसोसिएट और सहायक प्रोफेसर करवाएंगे पीएचडी
नए रेगुलेशन के तहत कोई भी फुल टाइम नियमित, एसोसिएट और सहायक प्रोफेसर पीएचडी करवा सकेंगे। प्रोफेसर और एसोसिएट को पीएचडी करवाने के लिए कम से कम पांच रिसर्च प्रकाशित होनी जरूरी होंगी। जबकि सहायक प्रोफेसर के लिए पांच साल तक टीचिंग, रिसर्च अनुभव के साथ तीन रिसर्च प्रकाशित होनी जरूरी रहेंगी। नए नियम में प्रोफेसर आठ से अधिक, एसोसिएट प्रोफेसर कम से कम छह और अस्सिटेंट प्रोफेसर कम से कम चार पीएचडी स्कॉलर्स रख सकता है। इसके अलावा विदेशी पीएचडी स्कॉलर्स मिलने पर दो स्कॉलर्स सुपर न्यूमेरी सीट के तहत रखे जा सकते हैं।


पीएचडी प्रोग्राम में अब ऐसे होंगे दाखिले, यह होगा क्राइटीरिया

विश्वविद्यालयों में वर्तमान में जारी व्यवस्था यानी तीन साल स्नातक और दो साल का पीजी करने वाले छात्र भी पीएचडी में दाखिला ले सकते हैं। उन्हें पीएचडी में दाखिले के लिए विश्वविद्यालयों या एनटीए की संयुक्त दाखिला प्रवेश परीक्षा में भाग लेने के लिए पीजी प्रोग्राम में 50 या 55 फीसदी अंक (विश्वविद्यालय के क्राइटीरिया के आधार पर)होने अनिवार्य हैं।

चार वर्षीय स्नातक और एक साल का पीजी प्रोग्राम की पढ़ाई करने वाले छात्र भी पीएचडी में दाखिले ले सकते हैं। इन्हें भी पीएचडी दाखिले के लिए विश्वविद्यालयों या एनटीए की संयुक्त दाखिला प्रवेश परीक्षा में भाग लेने के लिए पीजी प्रोग्राम में 50 या 55 फीसदी अंक(विश्वविद्यालय के क्राइटीरिया के आधार पर) होने अनिवार्य है।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत चार वर्षीय डिग्री प्रोग्राम के तहत रिसर्च या ऑनर्स प्रोग्राम के छात्र सीधे पीएचडी में दाखिले ले सकेंगे। लेकिन पीएचडी के लिए विश्वविद्यालयों की संयुक्त दाखिला प्रवेश परीक्षा में शामिल होने के लिए सीजीपीए 7.5 से अधिक होना चाहिए है।

विश्वविद्यालयों की कुल सीटों में से 60 फीसदी सीट नेट या जेआरएफ क्वालीफाई छात्रों के लिए आरक्षित रहेंगी।

विश्वविद्यालय सिर्फ अपनी 40 फीसदी सीटों पर अपनी या एनटीए द्वारा आयोजित होने वाली संयुक्त दाखिला प्रवेश परीक्षा की मेरिट से दाखिला दे सकते हैं।

यदि कुछ 60 फीसदी सीटों के लिए योग्य उम्मीदवार नहीं मिलते हैं तो फिर विश्वविद्यालय खाली सीटों को 40 फीसदी ओपन सीटों से जोड़ सकेंगे। यानी वे इन खाली सीटों पर विश्वविद्यालय या एनटीए की संयुक्त दाखिला प्रवेश परीक्षा की मेरिट से सीट आवंटन कर सकेंगे। इस पर अभी विशेषज्ञ कमेटी में मंथन चल रहा है। इस पर अभी कोई प्रस्ताव तैयार नही हुआ है और न ही अभी कोई फैसला हुआ है।

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