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श्रीमान विजय किरण आनंद पूर्व महानिदेशक स्कूल शिक्षा की विदाई की संध्या पर विशेष लेख

*श्रीमान विजय किरण आनंद पूर्व महानिदेशक स्कूल शिक्षा की विदाई की संध्या पर विशेष लेख*
_मेरा विचार कुछ ए आर पी द्वारा मुख्यमंत्री को संबोधित उस पत्र से प्रस्फुटित होता है जो उनके पुनर्वापसी के संबंध में है_
*अंधा क्या चाहे दो आंख।* *जिस प्रत्याशा में सम्मानित ए आर पी लोगों ने ए आर पी पद जॉइन किया था उस पद के सम्मान की प्रासंगिकता श्री विजय किरण आनंद के पद पर रहते ही संभव थी।पद प्रतिष्ठा और रुतबे में कुछ तो फर्क अवश्य ही आएगा।*
* *इन सभी का दुखी होना स्वाभाविक है क्योंकि जैसे विजय जी अपने लिए एक शीर्ष पद शिक्षा महानिदेशक का पद ही बना लिया सारी शक्तियों का केंद्रीकरण कर लिया शिक्षा निदेशक, शिक्षा सचिव जैसे पद निष्प्रभावी हो गए ट्रांसफर ,पोस्टिंग ,प्रशिक्षण ,राज्य परियोजना के समस्त कार्य एवं अन्य अनेकानेक या यूं कहें कि समस्त कार्य उनके आदेश से होने लगे ,वैसे ही अपने बीच के कुछ साथी भी विजय किरण आंनद की ” *फुट डालो और राज करो* ” की *अंग्रेजी नीति के शिकार होकर तथा पद प्रतिष्ठा,धन के लालच में विधर्मियों से समझौता कर बैठे इन्हीं को ए आर पी नाम दिया गया तत्पश्चात अपने मिशन को और भी शक्तिशाली करने की मंशा हमारे खंड और अखण्ड के दंडाधिकारियों द्वारा संकुल शिक्षकों का जबरन चयन कर लिया गया इसमें 60 प्रतिशत से अधिक का चयन बिना उनकी मर्जी के किया गया और इनको 3000 रूपये वार्षिक अतरिक्त दिया जाने लगा।इनमें भी जोश आ गया और अपने साथियों को जाल में फसाने में मदद करने लगे अर्थात उन्हें तो डिप्टी के समकक्ष /नीचे का अधिकारी बनने का गौरव और 3000 की अतिरिक्त वेतन वृद्धि विधर्मी कार्यों में नियोजित करके अपने मूल कार्य से इतर निरीक्षण ,प्रशासन आदि कार्यों में सहयोग करके प्रेरणा एप ,कायाकल्प, प्रशिक्षण मॉड्यूल ,ऑनलाइन छुट्टी ,आदि सभी प्रकार के कार्यों को धरातल पर उतार दिया ,जिससे संगठन के ऑनलाइन या प्रेरणा को लेकर चल रहे विरोध का गहरा आघात लगा ।*
*आखिर ये चोट संगठन को उसके अपनों ने दी थी ,संगठन के साथ विश्वासघात किया था अपने धर्म और कर्म से भी विश्वासघात किया जिससे संगठन को अपने इन विधर्मी कुलद्रोही के सामने नतमस्तक होना ही था क्योंकि कुल रक्षा की लोकमर्यादा का पालन करने के कारण इनके ऊपर हथियार न उठा पाने को विवश था ।इतिहास साक्षी है कि हमारी पराजय के कारण हमारे अपने ही होते हैं विभीषण, जयचन्द मानसिंह आदि सरीखे अनेकों उदाहरण मौजूद हैं।*
जिस अधिकारी की इतनी तारीफ सोशल मीडिया पर लोग कर रहें हैं उसने क्या-
**हमारे शिक्षा मित्र साथियों के लिए एक भी शब्द बोला । जो 10000 मानदेय पाता है उससे जबरन मोबाइल खरीदवाया गया उसी 10,000 में इंटरनेट चलाने के लिए बाउचर भी डलवाया गया ।उनके मानदेय वृद्धि के लिए एक भी पत्र लिखा? या उनको स्थायी बनाने के लिए एक भी शब्द बोला? आप सभी को मालूम होगा कि शिक्षा मित्र पद उस ग्राम सभा के सबसे प्रतिभाशाली छात्रों एवं होनहार युवाओं का चयन हुआ था जिनका जीवन आज अंधकारमय हो गया है इस महगाई के दौर में फांकाकशी करने को मजबूर हैं।*
*क्या शिक्षक सेवा नियमावली में अनिवार्य या अधिमानी योग्यता के तहत कही मोबाइल रखने या उसका प्रयोग करना वर्णित है?*
*क्या इन महोदय के द्वारा टेबलेट दिया गया.?*
*क्या इन महोदय के बारे में सोचा गया कि 60 साल का सेवारत शिक्षक बिना प्रशिक्षण के मोबाइल नही चला सकता है।*
*क्या इन महोदय द्वारा शिक्षकों के रिक्त पदों को भरने के लिए कोई प्रयास किया गया?*
*क्या इन महोदय के द्वारा 2015 से लंबित पदोन्नति के संबंध में कोई कदम उठाए गए?*
* *क्या इन महोदय द्वारा शिक्षकों द्वारा ऑनलाइन फीडिंग डाटा खर्च , मोबाइल क्रय करने हेतु किसी प्रकार के बजट का प्राविधान किया गया?*
*क्या शिक्षक के कार्य का मूल्यांकन कायाकल्प से किया जाना उचित है जो कि ग्राम सभा के द्वारा कराया जाता है?*
*क्या 17140 एवं18150 की विसंगतियां संविधान के समानता के अधिकार का अतिरेक नही करती हैं?इस पर इन महोदय के द्वारा कौन से कदम उठाए गए?*
*विभिन्न प्रकार के मॉड्यूल और प्रशिक्षण के नाम करोड़ों रूपए पानी की तरह बहाने वाले लोगों को संगठन की मांग कक्षा- कक्ष,प्राथमिक स्तर पर पाँच और जूनियर स्तर पर चार शिक्षकों की नियुक्ति, प्रति विदयालय एक लिपिक और एक परिचारक की नियुक्ति ,बिजली ,पानी ,फर्नीचर जैसी मूलभूत सुविधाओं की तरफ इन महोदय का ध्यान क्यों नही गया?*
*इन श्रीमान जी को या इनके वकालत करने वालों को यह बात मालूम होना चाहिए कि अनुकूल दशाओं में कार्य करने की क्षमता बढ़ जाती है ।हमारे प्राथमिक विद्यलयों में वर्तमान के भौतिक युग काल परंपरा के अनुसार सुबिधाओं का नितांत अभाव दिखता है जिससे शिक्षक अपनी सारी ऊर्जा इस प्राकृतिक संघर्ष में ही खर्च कर देता है।*
* *शिक्षकों को बात -बातमें विभिन्न उदाहरणों द्वारा प्रेरित करने वाले खुद अपने लिए किन सुख सुबिधाओं या भत्तों का परित्याग किये.?दंडात्मक अनुशासन नही प्रभावात्मक अनुशासन स्थापित करने की जरूरत* है।” _पर उपदेश कुशल बहुतेरे जे अचरहि ते नर न घनेरे।”_
*Army march on stomach सेना पेट के बल चलती है इसलिए सेनापति का यह प्रथम उत्तरदायित्व है कि वह अपनी सेना के सुख सुविधा का खयाल करें और उन्हें रशद सामग्री के बारे में बिल्कुल ही न सोचना पड़े। ऐसा कोई कृत्य क्या इन महोदय के द्वारा किया गया?*
* *सामूहिक जीवन बीमा योजना में अब जीवन बीमा के अधिकारियों द्वारा जीवन बीमा की धनराशि देने से इनकार कर दिया गया है ।इसी के चलते माध्यमिक में जीवन बीमा की कटौती बंद कर दी गई है लेकिन बेसिक में अभी भी ये निरंतर चालू है ।ये धन अब किसके आदेश से कहाँ जा रहा है?ये भी कोई बताने को नही तैयार है संगठन द्वारा बार बार पत्र देकर इस संबंध में ध्यानाकर्षण कराया गया लेकिन नतीजा सिफर ही है।क्या इन महोदय द्वारा इस संबंध में भी कोई कदम उठाया गया?*
*क्या इन महोदय द्वारा किसी अभिभावक के मोबाइल न होने, बैंक खाता न होने, मल्टीमीडिया सेट न होने ,डाटा के पैसे न होने ,विद्यालय प्रबंधन समिति के सदस्यों की मानसिकता, गाँव देहात के दिन प्रतिदिन के रोजी रोटी के लिए संघर्ष करता आदमी बिना किसी लाभ के आम आदमी के द्वारा किसी प्रकार के सहयोग न करने जैसी असंख्य महत्वपूर्ण बिंदुओं पर विचार किया गया?*
*जब पंचायत चुनाव में कोरोना अपने चरम पर था तो क्या इनके द्वारा पंचायत चुनाव रोकने के संबंध में कोई कदम उठाए गए?लगभग 2000 अध्यापक इस चुनाव में शहीद हो गए संगठन पंचायत चुनाव रोकने के लिए रोता बिलखता रहा चुनाव कराता रहा।*
*क्या इनके द्वारा उस समय संवेदना व्यक्त की गई उनके अनुग्रह राशि के बारे में कुछ कहा गया? जब 3 बनाम 1621 के मुद्दे पर सरकार बैकफुट पर आ गई उसको अपने बचाव का कोई रास्ता नही दिखा तब जाकर शिक्षकों के सत्यपनोपरांत और हलफनामे के आधार पर वेतन देने की बात की गई।और एक दो बार मृतकों के आश्रितों को नौकरी देने की बात की गई लेकिन यह मजबूरी में अपनी छीछालेदर बचाने के लिए किया गया लेकिन गलतियां तुरपाई से नही छुपती।*

बिचार करें जयचंद कितने और प्रथ्वीराजों की बलि चड़वाएँगे ?

*जय शिक्षक* *जय भारत*
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