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राजद्रोह कानून के तहत कार्रवाई पर सुप्रीम कोर्ट की रोक, सरकार के समीक्षा करने तक लागू रहेगी पाबंदी,जाने क्या है राजद्रोह कानून(124A)

Supreme Court Order on Sedition Law: सुप्रीम कोर्ट ने राजद्रोह के सभी मौजूदा मामलों पर स्टे लगा दिया है. साथ ही केंद्र और राज्य सरकारों से नए मामले दर्ज न करने को भी कहा है.

Supreme Court Decision on Sedition Law: देश की सबसे बड़ी अदालत ने आज राजद्रोह कानून के बारे में अहम आदेश दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने आईपीसी के सेक्शन 124ए के तहत राजद्रोह के सभी मौजूदा मामलों में आगे की कार्रवाई पर स्टे लगा दिया है. देश की सबसे बड़ी अदालत ने यह भी कहा है कि सरकार जब तक इस कानून की समीक्षा कर रही है, केंद्र और राज्य सरकारों को इस कानून के तहत नए मामले दर्ज नहीं करने चाहिए. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मुताबिक राजद्रोह कानून के तहत कार्रवाई पर रोक लगाने वाला यह आदेश तब तक जारी रहेगा जब तक सरकार इस कानून की समीक्षा पूरी नहीं कर लेती. कोर्ट ने इस कानून के तहत जेल में बंद सभी आरोपियों को जमानत के लिए कोर्ट के पास जाने की छूट भी दी है.

ये सभी अहम निर्देश सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस एनवी रमन्ना की अध्यक्षता वाली एक बेंच ने दिए हैं. कोर्ट ने राजद्रोह से जुड़े प्रावधानों की वैधता को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करने के लिए जुलाई के तीसरे हफ्ते तक का समय दिया है. कोर्ट ने कहा है कि इस दौरान केंद्र सरकार इस कानून की समीक्षा पूरी कर सकती है.

पिछले साल वर्ष 2021 में मेजर जनरल (रिटायर्ड) एसजी वोम्बटकेरे ने राजद्रोह से जुड़े आईपीसी के सेक्शन 124ए को चुनौती देने वाली याचिका दायर की थी. इस पर सुनवाई के दौरान कोर्ट ने अंग्रेजी राज से चले आ रहे इस औपनिवेशिक कानून के बारे में कई तीखी टिप्पणियां की थीं. सरकार ने कोर्ट में पहले तो इस कानून का बचाव किया, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के कड़े रुख को देखते हुए सोमवार को कानून की समीक्षा की बात मान ली. सरकार ने सोमवार को सुप्रीम कोर्ट से अनुरोध किया कि वो इस कानून की समीक्षा करने को तैयार है, लिहाजा इसकी वैधता पर कोर्ट विचार न करे.

क्या है राजद्रोह कानून


आईपीसी की धारा 124ए के तहत अगर कोई शख्स सार्वजनिक तौर पर लिखित या मौखिक रूप से या हस्ताक्षर या अन्य किसी जाहिर तरीके से विधि द्वारा स्थापित सरकार के खिलाफ नफरत, शत्रुता या फिर अवमानना की स्थिति पैदा करता है तो उसे राजद्रोह का दोषी माना जाएगा. इसके लिए उसे आजीवन कारावास तक की सजा हो सकती है और जुर्माना भी लगाया जा सकता है. खास बात यह है कि थॉमस मैकाले (Thomas Macaulay) ने साल 1860 में जब आईपीसी (इंडियन पीनल कोड) को ड्राफ्ट किया था, तो राजद्रोह से जुड़ा प्रावधान इसमें नहीं था. साल 1890 में राजद्रोह को अपराध घोषित करने के लिए आईपीसी में सेक्शन 124ए विशेष अधिनियम XVII के जरिए जोड़ा गया.

पहली बार 1891 में हुआ था राजद्रोह कानून का इस्तेमाल


चीफ जस्टिस रमन्ना ने हाल ही में इस मामले की सुनवाई के दौरान कहा था कि अंग्रेजों ने राजद्रोह कानून का इस्तेमाल महात्मा गांधी और बाल गंगाधर तिलक को चुप कराने के लिए किया था. एलओसी ब्लॉग के मुताबिक पहली बार राजद्रोह से जुड़े कानून का इस्तेमाल एक अखबार के संपादक जोगेंद्र चंद्र बोस के खिलाफ वर्ष 1891 में किया गया था. इसके बाद बाल गंगाधर तिलक और महात्मा गांधी के अलावा पंडित जवाहरलाल नेहरू, मौलाना अबुल कलाम आजाद और विनायक दामोदर सावरकर के खिलाफ भी राजद्रोह के आरोप में केस किए गए. इतने स्वतंत्रता सेनानियों के खिलाफ इस्तेमाल किए गए इस कानून का प्रयोग आजादी के बाद भी बंद नहीं हुआ.

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