69000 शिक्षक भर्ती वाले अभ्यर्थियों के लिए संकट बनेंगे शिक्षामित्र? सुप्रीम कोर्ट याचिका (exclusive) 🚩

69000 शिक्षक भर्ती वाले अभ्यर्थियों के लिए संकट बनेंगे शिक्षामित्र?
सुप्रीम कोर्ट याचिका (exclusive) 🚩

कक्षा एक से पांच तक की* शिक्षक भर्ती में बीएड डिग्रीधारियों को शामिल करने की राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद (एनसीटीई) की 28 जून 2018 की अधिसूचना पिछले महीने 11 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट से खारिज होने के बाद नये सिरे से कानूनी लड़ाई शुरू हो गई है। एनसीटीई के अधिसूचना के आधार पर उत्तर प्रदेश के परिषदीय स्कूलों में 69000 सहायक अध्यापक भर्ती के तहत चयनित बीएड डिग्रीधारियों को बाहर करने की मांग को लेकर शिक्षामित्रों ने सर्वोच्च न्यायालय में 304 पेज की याचिका दायर की है।

शिक्षामित्रों का तर्क है कि वह प्राथमिक स्तर की शिक्षक पात्रता परीक्षा (टीईटी) पास हैं। वह 69000 भर्ती के लिए 2019 में आयोजित शिक्षक भर्ती परीक्षा में 40 / 45 प्रतिशत अंक या अधिक प्राप्त करने वाले 32629 अभ्यर्थियों में शामिल थे। लेकिन बीएड डिग्रीधारियों के 69000 भर्ती में शामिल होने के कारण शिक्षक भर्ती परीक्षा में अभ्यर्थियों की संख्या और कटऑफ बढ़ने के कारण उनका चयन नहीं हो सका था।

अब *चूंकि एनसीटीई की अधिसूचना खारिज हो चुकी है, इसलिए* उसके आधार पर बीएड डिग्रीधारियों का चयन स्वत: अर्थहीन हो गया है। यही नहीं 69000 भर्ती वर्तमान में गतिमान है और पूरी सीटें अब तक नहीं भरी जा सकी है। शिक्षामित्रों की ओर से सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका की प्रति सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रही है।

टीईटी पास हैं 45 हजार शिक्षामित्र

शिक्षामित्रों का दावा है कि जुलाई 2017 में 1.37 लाख शिक्षामित्रों का सहायक अध्यापक पद पर समायोजन निरस्त होने के बाद बड़ी संख्या में शिक्षामित्रों ने पढ़ाई करके टीईटी पास कर ली। लेकिन शिक्षक भर्ती के लिए अलग से परीक्षा लागू होने के कारण तकरीबन 45 हजार से अधिक टीईटी पास शिक्षामित्र आज तक सहायक अध्यापक नहीं बन सके हैं।

बड़ा फैसला – आकांक्षी जिलों के शिक्षकों के तबादले का रास्ता साफ, कोर्ट ने दिया यह आर्डर

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बड़ा फैसला – आकांक्षी जिलों के शिक्षकों के तबादले का रास्ता साफ, कोर्ट ने दिया यह आर्डर

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने प्रदेश के अति पिछड़े (आकांक्षी) जिलों के परिषदीय विद्यालयों में कार्यरत अध्यापकों को बड़ी राहत दी है। कोर्ट ने कहा कि इन जिलों में कार्यरत अध्यापकों को भी विशेष परिस्थितियों में अंतर्जनपदीय स्थानांतरण का अधिकार है। कोर्ट ने कहा कि बेसिक शिक्षा परिषद में सहायक अध्यापक का पद जिलास्तरीय कैडर का पद है इसलिए सामान्यत दूसरे जिले में स्थानांतरण की मांग नहीं की जा सकती है। लेकिन विशेष परिस्थिति में खासतौर से मेडिकल इमरजेंसी के केस में बेसिक शिक्षा परिषद अध्यापक नियमावली 2008 के रूल 8(2)(डी ) के तहत अंतर्जनपदीय स्थानांतरण पर बेसिक शिक्षा बोर्ड या निदेशक बेसिक शिक्षा द्वारा विचार किया जा सकता है। कोर्ट के इस फैसले से आकांक्षी जिलों में कार्यरत अध्यापकों के अंतर्जनपदीय स्थानांतरण का रास्ता साफ हो गया।

यह आदेश न्यायमूर्ति आशुतोष श्रीवास्तव ने मंजू पाल व दर्जनों अन्य अध्यापकों की ओर से दाखिल याचिकाओं पर एकसाथ सुनवाई करते हुए दिया है। अधिवक्ता नवीन कुमार शर्मा का कहना था कि वर्ष 2019-20 के लिए स्थानांतरण नीति का शासनादेश 15 दिसंबर 2020 को जारी किया गया। इस शासनादेश में प्रावधान किया गया कि आकांक्षी जनपद (सिद्धार्थनगर, श्रावस्ती, बहराइच, सोनभद्र, चंदौली, फतेहपुर, चित्रकूट व बलरामपुर) में कार्यरत अध्यापकों का अंतर्जनपदीय स्थानांतरण नहीं किया जाएगा।

इस शासनादेश को दिव्या गोस्वामी केस में चुनौती दी गई थी। 3 दिसंबर 2020 को आए दिव्य गोस्वामी केस के फैसले में हाईकोर्ट ने कहा कि मेडिकल इमरजेंसी की स्थिति में मिड टर्म में भी अंतर्जनपदीय स्थानांतरण की मांग की जा सकती है। दिव्या गोस्वामी केस के फैसले के बाद राज्य सरकार ने 15 दिसंबर 2020 को नया शासनादेश जारी किया और 17 दिसंबर 2020 को एक सर्कुलर भी जारी किया गया। सर्कुलर व शासनादेश में आकांक्षी जनपदों में कार्यरत अध्यापकों के स्थानांतरण के संबंध में कोई नियम तय नहीं किया गया है।

अधिवक्ता नवीन शर्मा का कहना था कि याची की नियुक्ति 2015 में आकांक्षी जनपद बहराइच में की गई। लेकिन उसका परिवार बरेली में रहता है। याची स्वयं कैंसर पीड़ित है और बरेली में उसका इलाज चल रहा है। उसने बरेली में अंतर्जनपदीय स्थानांतरण की मांग की थी, जिसे इस आधार पर खारिज कर दिया गया कि याची आकांक्षी जनपद में कार्यरत है इसलिए अंतर्जनपदीय स्थानांतरण नहीं किया जा सकता।

कोर्ट ने कहा कि दिव्या गोस्वामी केस के फैसले के बाद आए शासनादेश और सर्कुलर में आकांक्षी जिलों से अंतर्जनपदीय स्थानांतरण पर कोई रोक नहीं लगाई गई है। वर्तमान में अंतर्जनपदीय स्थानांतरण पर रोक लगाने की कोई नीति प्रभावी नहीं है। ऐसे में याची की बहराइच से बरेली स्थानांतरण की मांग पर सहानुभूतिपूर्वक विचार करने की आवश्यकता है। कोर्ट ने कहा कि रूल 8(2)(डी) के तहत अंतर्जनपदीय स्थानांतरण के लिए एक जिले में कम से कम पांच वर्ष का कार्यकाल पूरा करना आवश्यक है। लेकिन विशेष परिस्थिति में अंतर्जनपदीय स्थानांतरण के प्रार्थना पत्र पर बेसिक शिक्षा बोर्ड या निदेशक बेसिक शिक्षा उक्त अवधि से पहले भी विचार कर सकते हैं। कोर्ट ने बेसिक शिक्षा बोर्ड को इस बात पर निर्णय लेने का निर्देश दिया कि याची की परिस्थिति विशेष परिस्थिति के अंतर्गत आती है या नहीं।

NIOS से डीएलएड करने वाले याचियों को UPTET 2021 में शामिल करने का मा0 उच्च न्यायालय का आदेश, देखें

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69000 सहायक अध्यापक भर्ती मामले में एक गलत प्रश्न का अंक याचिकाकर्ताओं को देने का निर्देश, चयनित हो चुके लोग नहीं होंगे प्रभावित

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 2018 की सहायक अध्यापक भर्ती परीक्षा में पूछे गए सवालों के सही उत्तर को लेकर दाखिल अपील पर अभ्यर्थियों को आंशिक राहत दी है। कोर्ट ने एक प्रश्न के उत्तर को गलत मानते हुए उसका एक अंक उन अभ्यर्थियों को देने का निर्देश दिया है, जिन्होंने हाईकोर्ट में अपील या याचिका दाखिल की है और जिनके एक ही अंक कम पड़ रहे हैं।

अभ्यर्थियों की ओर से छह सवालों के उत्तर को लेकर चुनौती दी गई थी। उनके मुताबिक भर्ती प्राधिकारी ने जिन उत्तरों को सही माना है, वह सही नहीं हैं। कोर्ट ने इनमें से सिर्फ एक प्रश्न संख्या 60 को लेकर की गई आपत्ति को ही सही पाया। इस एक प्रश्न का एक अंक उन अभ्यर्थियों को देने का निर्देश दिया है, जिन्होंने याचिका या अपील दाखिल की है और उनमें भी यह अंक उन्हीं अपीलार्थियों, याचिकाकर्ताओं को मिलेगा जिनके एक अंक ही कम पड़ रहे हैं। कोर्ट ने कहा है कि यदि यह एक अंक पाने के बाद अभ्यर्थी मेरिट में आ जाता है तो उसे नियुक्ति दी जाए। अभिषेक श्रीवास्तव व दर्जनों अन्य की ओर से दाखिल विशेष अपीलों पर कार्यवाहक मुख्य न्यायमूर्ति एमए भंडारी और न्यायमूर्ति अनिल कुमार ओझा की पीठ ने सुनवाई की।

विशेष अपील में एकल न्यायपीठ के फैसले को चुनौती दी गई थी। एकल पीठ ने अभ्यर्थियों का दावा खारिज कर दिया था। अपीलों में कहा गया कि सहायक अध्यापक भर्ती परीक्षा छह जनवरी 2019 को हुई। इसकी उत्तर कुंजी पांच अगस्त 20 को जारी की गई। उत्तर कुंजी से मिलान करने पर अभ्यर्थियों ने छह प्रश्नों पर आपत्ति की। उनके मुताबिक परीक्षा प्राधिकारी ने जिन उत्तरों को सही माना है वह सही है जबकि अभ्यर्थियों द्वारा दिए गए जवाब सही हैं।
रणविजय सिंह केस के आलोक में परीक्षणहाईकोर्ट ने सर्वोच्च न्यायालय द्वारा रणविजय सिंह केस में प्रतिपादित विधि सिद्धांत के आलोक में मामले का परीक्षण किया। इस केस में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि उत्तर पुस्तिकाओं के पुर्नपरीक्षण या स्क्रूटनी के मामले में अदालतों के अधिकार सीमित हैं। यदि भर्ती के नियमों में पुर्नपरीक्षण व स्क्रूटनी के प्रावधान हैं तो अधिकारियों को यह अधिकार अभ्यर्थियों को देना चाहिए। यदि प्रावधान नहीं है तो अदालत तभी पुर्नपरीक्षण या स्क्रूटनी का आदेश दे सकती है जबकि ठोस साक्ष्यों के साथ यह प्रमाणित कर दिया जाए कि परीक्षा प्राधिकारी ने वास्तव में सही उत्तर चुनने में गलती की है।
सर्वोच्च अदालत ने यह भी कहा है कि संदेह होने की दशा में संदेह का लाभ परीक्षा प्राधिकारी को मिलेगा न कि अभ्यर्थी को। अदालत ने सभी छह प्रश्नों का बारी बारी से परीक्षण किया। पांच प्रश्नों में अभ्यर्थी अपने दावे को साबित नहीं कर सके। जबकि प्रश्न संख्या में 60 में विकल्प के रूप में दिए गए लेखक का नाम गलत होने के कारण कोर्ट ने इस प्रश्न का एक अंक समिति अभ्यर्थियों को देने का निर्देश दिया है।
चयनित हो चुके लोग नहीं होंगे प्रभावितहाईकोर्ट ने कहा है कि जो लोग पहले से चयनित हो चुके हैं और नियुक्ति पा चुके हैं उन पर किसी प्रकार का प्रभाव नहीं पड़ना चाहिए। चयन व नियुक्ति प्रक्रिया पूरी हो चुकी है इसलिए ज्यादा संख्या में या सभी अभ्यर्थियों को अंक देने से पूरी प्रक्रिया अस्त व्यस्त हो जाएगी। लिहाजा लाभ सिर्फ उनको मिलेगा जिन्होंने याचिका दाखिल की है और जिनके एक अंक ही कम पड़ रहे हैं। यदि किसी के दो अंक कम हो रहे हैं तो उसको इस आदेश का लाभ नहीं मिलेगा

BIG BRAKING NEWS : उ0 प्र0 पंचायत चुनाव पर ब्रेक, हाइकोर्ट ने आरक्षण प्रक्रिया पर लगाई रोक लगाई।

उ0 प्र0 पंचायत चुनाव पर ब्रेक, हाइकोर्ट ने आरक्षण प्रक्रिया पर लगाई रोक लगाई।

INTER-DISTRICT TRANSFER : हाइकोर्ट में याचिकाओं की अटकलों के बीच अब तक रिलीव होने का आदेश नहीं हुआ जारी, विभाग ने साधी चुप्पी, म्यूच्यूअल की सूची का भी पता नहीं।

हाइकोर्ट में याचिकाओं की अटकलों के बीच अब तक रिलीव होने का आदेश नहीं हुआ जारी, विभाग ने साधी चुप्पी, म्यूच्यूअल की सूची का भी पता नहीं।

प्रयागराज : नए साल पर बेसिक शिक्षा परिषद ने अंतर जिला तबादले की सौगात दी। बड़ी संख्या में शिक्षक तबादला न होने से नाराज हैं लेकिन, जिन 21,695 का तबादला हो गया अब वे भी परिषद की कार्यशैली से खासे खफा हैं। वजह, सात दिन बाद भी रिलीव होने का आदेश जारी नहीं हुआ है। सभी जहां का तहां फंसे हैं। वे मनचाहे जिले में जल्द तैनाती चाहते हैं लेकिन, विभाग बाधा बना है।

ऐसा भी नहीं है परिषद ने पहली बार अंतर जिला तबादले किए हैं। इसके पहले स्थानांतरण सूची आने के साथ 10 दिन में स्थानांतरित जिले में कार्यभार ग्रहण करने का आदेश भी होता रहा है लेकिन, इस बार अफसर चुप्पी साधे हैं। परिषद कार्यालय की तरफ से न तो जिलों को स्थानांतरित शिक्षकों की सूची भेजी गई है न ही रिलीविंग के दिशा निर्देश आए हैं, सभी शिक्षक परेशान हैं और मुख्यालय के अफसर भी वाजिब जवाब नहीं दे पा रहे हैं। ज्ञात हो कि परिषदीय शिक्षकों के अंतर जिला तबादले की प्रक्रिया दो दिसंबर 2019 से चल रही है। परिषद सचिव प्रताप सिंह बघेल के मोबाइल नंबर पर कई बार फोन किया गया लेकिन, वे फोन ही नहीं उठा रहे हैं।


पारस्परिक की सूची का अता-पता नहीं : सामान्य स्थानांतरण के साथ ही विभाग ने लगभग 9641 शिक्षकों से पारस्परिक स्थानांतरण के लिए भी आवेदन लिया हैं, किंतु अभी तक इन शिक्षकों को भी मायूसी हाथ लगी है। शिक्षक पारस्परिक स्थानांतरण की सूची जारी करने की लगातार मांग कर रहे हैं। अभ्यíथयों का कहना है कि जब दोनों प्रक्रिया साथ साथ चली तो सूची का प्रकाशन भी साथ ही होना चाहिए था।


हाईकोर्ट में याचिका की भी अटकलें
परिषदीय शिक्षकों की ओर से हाईकोर्ट में विशेष अपील दाखिल करने की चर्चा है। कहा जा रहा है कि कुछ शिक्षकों ने याचिका में कहा है कि शासनादेश में पुरुषों की तीन साल व महिलाओं की एक साल सेवा अवधि का उल्लेख था लेकिन, ऐन मौके पर उसे बदलकर पांच साल व दो साल किया गया। यह शासनादेश की अवहेलना है। परिषद यह नियम नए तबादलों में भी लागू कर सकता था, लेकिन जानबूझकर पहले से चल रही प्रक्रिया को बाधित किया गया। हालांकि परिषद ने याचिका की नोटिस मिलने की पुष्टि नहीं की है।


अंतर्जनपदीय तबादला मामले में हाईकोर्ट में याचिका की भी अटकलें

परिषदीय शिक्षकों की ओर से हाईकोर्ट में विशेष अपील दाखिल करने की चर्चा है। कहा जा रहा है कि कुछ शिक्षकों ने याचिका में कहा है कि अंतर्जनपदीय तबादला शासनादेश में पुरुषों की तीन साल व महिलाओं की एक साल सेवा अवधि का उल्लेख था लेकिन, ऐन मौके पर उसे बदलकर पांच साल व दो साल किया गया।

यह शासनादेश की अवहेलना है। परिषद यह नियम नए तबादलों में भी लागू कर सकता था, लेकिन जानबूझकर पहले से चल रही प्रक्रिया को बाधित किया गया। हालांकि परिषद ने याचिका की नोटिस मिलने की पुष्टि नहीं की है।

69000 शिक्षक भर्ती में 70% आरक्षित वर्ग के अभ्यर्थी, बेसिक शिक्षा विभाग की ओर से राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग को दिए जवाब में तथ्य आये सामने, 04 दिसम्बर को होनी है अहम सुनवाई

69000 शिक्षक भर्ती में 70% आरक्षित वर्ग के अभ्यर्थी, बेसिक शिक्षा विभाग की ओर से राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग को दिए जवाब में तथ्य आये सामने, 04 दिसम्बर को होनी है अहम सुनवाई

परिषदीय प्राथमिक स्कूलों में 69000 सहायक अध्यापक भर्ती के तहत 29 फीसदी सीटों पर सामान्य वर्ग के अभ्यर्थियों का चयन हुआ है। सबसे अधिक 45.80 प्रतिशत सीटों पर अन्य पिछड़ा वर्ग ( ओबीसी ) 23.49 प्रतिशत सीटों पर अनुसूचित जाति, जबकि अनुसूचित जनजाति के मात्र .36 (दशमलव तीन छह प्रतिशत) अभ्यर्थियों का सेलेक्शन हुआ है। यानि कुल 69.64 या 70 प्रतिशत अभ्यर्थी आरक्षित जबकि 28.70 फीसदी सामान्य वर्ग के अभ्यर्थी हैं। 

बेसिक शिक्षा विभाग की ओर से राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग को दिए जवाब में ये तथ्य सामने आए हैं। इस शिक्षक भर्ती में आरक्षण की अनदेखी मामले की सुनवाई आयोग के नई दिल्‍ली कार्यालय में 4 दिसंबर को होनी है। 69000 पदों में 34500 पद अनारक्षित वर्ग के लिए निर्धारित थे। आयोग में दाखिल जवाब के अनुसार सामान्य वर्ग के 19805,ओबीसी के 31605, एससी के 16212 जबकि एसटी वर्ग के मात्र 245 अभ्यर्थियों का चयन हुआ है। 

एसटी वर्ग के पर्याप्त अभ्यर्थी नहीं मिलने के कारण इस कैटेगरी के लिए आरक्षित पदों में से 1133 खाली रह गए। बड़ी संख्या में ओबीसी और एससी वर्ग के अभ्यर्थियों ने हाई मेरिट हासिल की जिससे उनका चयन भी नियमानुसार अनारक्षित वर्ग में हुआ।

68500 की पहली लिस्ट में 62% थे आरक्षित वर्ग के इससे पहले 2018 में शुरू हुई 68500 सहायक अध्यापक भर्ती की पहली लिस्ट में 62 प्रतिशत अभ्यर्थी आरक्षित वर्ग के थे। 13 अगस्त को घोषित परिणाम में 41566 अभ्यर्थी सफल हुए थे। तत्कालीन अपर मुख्य सचिव डॉ . प्रभात कुमार ने अपने ट्वीट के माध्यम से जानकारी दी थी कि 41566 अभ्यर्थियों में से 15772 (37 .95 या 38 प्रतिशत) सामान्य, 19168 (46 .12 या 46 प्रतिशत) ओबीसी, 6616 (15.92 या 16 फीसदी) एससी/एसटी वर्ग के अभ्यर्थी थे।

69000 अंतर्गत अवशेष शिक्षक भर्ती : नई जिला आवंटन सूची से फंसेगा आरक्षण का पेंच, जानिए क्यों और कैसे ?

69000 अंतर्गत अवशेष शिक्षक भर्ती : नई जिला आवंटन सूची से फंसेगा आरक्षण का पेंच, जानिए क्यों और कैसे ?

प्रयागराज : बेसिक शिक्षा परिषद 69000 शिक्षक भर्ती पूरी कराने के लिए शेष पदों 37339 की नई जिला आवंटन सूची जारी करता है तो आरक्षण का पेंच फंसना तय है। वजह, एसटी वर्ग के लगभग सभी अभ्यर्थी पहले ही नियुक्ति पा चुके हैं, वहीं ओबीसी अभ्यर्थी बड़ी संख्या में शेष हैं। नई सूची बनाने में सभी वर्गो का आरक्षण सही अनुपात में न होने से विवाद होगा और यदि उसे दुरुस्त करने का प्रयास हुआ तो पहले की सूची से चयनितों को बाहर होना पड़ सकता है। परिषद अब फिर से एक जून को जारी 67867 सूची से काउंसिलिंग कराए, तभी विवादों पर अंकुश लग सकता है।

परिषद ने प्राथमिक स्कूलों में 69000 शिक्षकों की नियुक्ति के लिए 67867 अभ्यर्थियों की जिला आवंटन सूची जारी की थी। तय पदों से कम संख्या की सूची इसलिए निकाली गई, क्योंकि एसटी के अभ्यर्थी नहीं मिल रहे थे। शीर्ष कोर्ट ने शिक्षामित्रों के 37339 पदों को रोककर शेष 31661 पदों पर चयन करने का आदेश दिया था। परिषद ने एक जून की सूची से ही अभ्यर्थियों का बिना जिला बदले 31277 को जिला आवंटित किया था। इस सूची में आरक्षण के अनुसार सामान्य, ओबीसी, एससी आदि थे, वहीं कम अभ्यर्थी होने की वजह एसटी अभ्यर्थी ही बने। उनमें से अधिकांश को नियुक्ति दी जा चुकी है।

सुप्रीम कोर्ट ने तय कटआफ अंक को सही माना है, अब शेष पदों पर शिक्षकों की नियुक्ति होनी है। इसकी नई जिला आवंटन सूची विवादों को बढ़ाएगी, क्योंकि ओबीसी के बड़ी संख्या में अभ्यर्थी पहली सूची में स्थान नहीं पा सके थे। शेष पदों में अनारक्षित सीटों के लिए उन्हें जिला आवंटन होगा तो आरक्षण का अनुपात गड़बड़ाएगा। साथ ही एसटी के अभ्यर्थी नए जिला आवंटन में काफी कम होंगे। आरक्षण दुरुस्त करने में पिछली जिला आवंटन सूची बेमतलब हो जाएगी।


हाईकोर्ट में चल रही सुनवाई

शिक्षक चयन की 31277 अभ्यर्थियों की सूची को हाईकोर्ट में चुनौती दी गई है, इसमें आरोप है कि ओबीसी वर्ग के कई अभ्यर्थियों का चयन न तो उनके वर्ग में हुआ और न ही सामान्य की सीटों पर चयनित हो सके हैं। अब सभी पद भरने के आदेश से हाईकोर्ट में चल रहे विवाद का पटाक्षेप हो सकता है। बशर्ते जिला आवंटन सूची ज्यों की त्यों जारी हो।

अनुदेशकों को 100 छात्र से कम होने पर हटाने पर रोक, 7000 रुपये मानदेय देने पर तीन हफ्ते में जवाब तलब

उरुआ, गोरखपुर में नियुक्त अनुदेशकों को सौ छात्र से कम संख्या होने के कारण हटाने के आदेश पर रोक लगा दी है। सातों याची अनुदेशकों को 31 जनवरी 2013 के शासनादेश के तहत कार्य करने देने व मानदेय का भुगतान करने का निर्देश दिया है। अनुदेशकों को मानदेय चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी के न्यूनतम वेतन से कम सात हजार रुपये देने पर राज्य सरकार से तीन हफ्ते में जवाब मांगा है।

यह आदेश न्यायमूíत पंकज भाटिया ने प्रभु शंकर व अन्य की याचिका पर दिया है। याची का कहना है कि संविधान के अनुच्छेद 21-ए के तहत केंद्र सरकार ने अनिवार्य शिक्षा कानून बनाया। शिक्षकों की जरूरत पूरी करने के लिए मानदेय पर 11 माह के लिए नवीनीकृत करने की शर्त के साथ अनुदेशकों की नियुक्ति की व्यवस्था की गयी। कला, स्वास्थ्य, शारीरिक कार्य शिक्षा देने के लिए 41307 अनुदेशकों के पद सृजित किये गये। इन्हें भरने के लिए विज्ञापन निकाला गया।


याचियों की 2013 में नियुक्ति हुई। फिर समय-समय पर कार्यकाल बढ़ाया जाता रहा। मई 2019 के बाद याचियों का नवीनीकरण करने से यह कहते हुए इन्कार कर दिया गया कि जरूरत नहीं है। छात्र संख्या 100 से कम हो गयी है। इसे चुनौती दी गयी। कोर्ट ने जिलाधिकारी को नवीनीकरण पर निर्णय लेने पर विचार का निर्देश दिया। जिलाधिकारी ने निरस्त कर दिया तो यह याचिका दाखिल की गयी है।

BEO भर्ती : प्रारम्भिक परीक्षा 16 अगस्‍त को होना तय, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने रोक लगाने से मना किया

प्रारम्भिक परीक्षा 16 अगस्‍त को होना तय, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने रोक लगाने से किया इनकार

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प्रयागराज : उत्‍तर प्रदेश में खंड शिक्षा अधिकारी (बीईओ) के लिए प्रारम्भिक परीक्षा 16 अगस्‍त को ही होगी। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यूपी सरकार और उत्‍तर प्रदेश लोकसेवा आयोग को बड़ी राहत देते हुए इस परीक्षा पर रोक लगाने से इनकार कर दिया। इलाहाबाद हाईकोर्ट में जनहित याचिका दाखिल कर बीईओ परीक्षा स्थगित करने की मांग की गई थी। इस पर हाईकोर्ट ने यह कहते हुए याचिका खारिज कर दी कि याची संगठन को परीक्षा के आयोजन को चुनौती देने का अधिकार नहीं है। 

याचिका पर जस्टिस शशिकांत गुप्‍ता और जस्टिस विवेक कुमार बिड़ला की डिवीजन बेंच ने तत्‍काल आधार पर सुनवाई की। बेंच ने कहा कि याचिका पोषणीय नहीं है। कोर्ट ने याचिका में जताई गई आशंकाओं को भी आधारहीन बताया। 

बीईओ परीक्षा रद करने के लिए जनहित याचिका प्रतियोगी छात्र संघर्ष समिति और अन्य की ओर से दाखिल की गई थी। याचिका में कोविड-19 संक्रमण के चलते परीक्षा में शामिल होने वाले अभ्‍यर्थियों की सुरक्षा को लेकर चिंता जताई गई थी। कोर्ट ने कहा है कि याची संगठन को जनहित याचिका में परीक्षा आयोजित करने को चुनौती देने का अधिकार नहीं है। कोर्ट ने परीक्षा के आयोजन पर हस्तक्षेप से इनकार करते हुए याचिका खारिज कर दी। इसके साथ ही 16 अगस्‍त को बीईओ परीक्षा का रास्‍ता साफ हो गया है। 


22 जिलों में 5.15 लाख अभ्‍यर्थी देंगे परीक्षा 

बीईओ परीक्षा 16 अगस्त को प्रदेश के 22 जिलों में आयोजित की गई है। प्रतियोगी छात्र संघर्ष समिति का कहना था कि कोरोना संक्रमण तेजी से बढ़ रहा है। ऐसे में परीक्षा देने जाने वाले अभ्‍यर्थियों को परीक्षा केंद्रों पर भीड़ का सामना करना पड़ सकता है। संक्रमण फैल सकता है।