रचनात्मकता को बढ़ाने में शिक्षकों की अहम भूमिका

शिक्षा मनुष्य को देवत्व प्रदान करती है। -विवेकानंद

 

“गांधीजी ने ‘हिन्द स्वराज’ (पुस्तिका) में लिखा था- ‘अंग्रेजी शिक्षा लेकर हमने अपने राष्ट्र को गुलाम बनाया है। जो लोग अंग्रेजी पढ़े हुए हैं, उनकी संतानों को नीति ज्ञान, मातृभाषा सिखानी चाहिए और हिन्दुस्तान की दूसरी भाषाएं सिखानी चाहिए’। अन्य प्राचीन धर्मों की तरह वैदिक दर्शन की भी यह मान्यता है कि प्रकृति प्राणधारा से स्पंदित है।”

बालक की शिक्षा ऐसी होनी चाहिए जिसे वह अपने स्वतंत्र व्यक्तित्व को विकसित करते हुए अपनी योग्यताओं तथा क्षमताओं के अनुसार स्वतंत्र नागरिक के रूप में राष्ट्र की सेवा कर सके। चूंकि भारतवर्ष अब एक जनतंत्रात्मक समाजवादी राष्ट्र है इसलिए अब हमारी शिक्षा का मुख्य उद्देश्य सच्चे, ईमानदार तथा कर्मठ नागरिक उत्पन्न करना है।

अध्यापक एक ऐसा सामाजिक प्राणी है, जो बेड़ियों में जकड़ा है लेकिन उससे स्वतंत्र सोच वाले नागरिक बनाने की उम्मीद की जाती है। अध्यापक शैक्षिक प्रशासन के ‘भययुक्त वातावरण’ में जीता है और स्कूल में बच्चों के लिए ‘भयमुक्त माहौल’ बनाने का रचनात्मक काम करता है। बच्चों को सवाल पूछने और जवाब देने के लिए प्रेरित करता है। इससे अध्यापकों के सामने मौजूद विरोधाभास विचारों के टकराव को समझा जा सकता है। इसके कारण अध्यापकों को वैचारिक अंतरविरोध का सामना करना पड़ता है।

रेखा यादव (सहायक अध्यापक)

प्राथमिक विद्यालय ईटगांव

शिक्षा क्षेत्र  ऐरायां फतेहपुर

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