लखनऊ। मेरठ की मृदुला पालीवाल बलरामपुर में शिक्षिका हैं। वर्ष 2015 में नियुक्ति हुईं। पति प्राइवेट नौकरी में हैं और छोटे बच्चे मेरठ में उनके साथ ही हैं। बच्चों को संभालने और परवरिश में खासी दिक्कतें आती हैं। गाजियाबाद की रुचि श्रावस्ती में शिक्षिका हैं और लम्बे समय से अंतरजनपदीय तबादले की राह ताक रही हैं।
नई सरकार से उम्मीदें: ये सिर्फ बानगी भर हैं, ऐसे कई उदाहरण हैं जहां शिक्षिका पत्नी अपने परिवार से दूर रहने को मजबूर हैं। अब नई सरकार के कामकाज शुरू करने के साथ ही नया सत्र शुरू हो चुका है और तबादले की राह देख रहे शिक्षकों को नई सरकार से उम्मीद बंधी है। तबादले की कोई स्थायी नीति न होने के कारण बीते 10 सालों में केवल पांच बार ही तबादले हुए हैं।
पिछली बार तबादले वर्ष 2019- 2020 में हुए थे। इसके लिए आदेश 2019 में जारी हुआ, सरकार ने तबादले के लाभार्थियों की संख्या अगस्त 2020 में जारी की और तबादले की सूची दिसम्बर 2020 में जारी हो पाई।
स्थायी नीति नहीं फिर भी सरकार करती है सहानुभूति पूर्ण फैसला: अंतरजनपदीय तबादलों की कोई स्थायी नीति नहीं है। जब भी अंतजरनपदीय तबादले करने होते हैं, सरकार नए सिरे से नीति बनाती है। 10 से लेकर पांच व तीन साल तक अनिवार्य सेवा का नियम समेत अब मेरिट सूची बनाने के लिए अंक निर्धारित किए गए हैं। पिछली बार सरकार ने महिला शिक्षकों के लिए एक वर्ष की सेवा और पुरुष शिक्षकों के लिए तीन वर्ष की सेवा का अनिवार्य नियम बनाया था लेकिन हाईकोर्ट ने इस नियम को खारिज कर महिलाओं के लिए तीन वर्ष व पुरुष शिक्षकों के लिए पांच वर्ष की सेवा अनिवार्य की। इस फैसले के चलते 2020 में 50 फीसदी से ज्यादा शिक्षक अपात्र हो गए।
कम कटआफ होने से मिलती है दूर के जिले में तैनाती: बड़े शहरों में रिक्त पद कम होने के कारण कटऑफ बहुत ऊंचा ज्यादा है जबकि पिछड़े आठ जिलों समेत पूर्वांचल के कई जिलों की मेरिट काफी नीचे होती है। यही कारण है कि बड़े शहरों के अभ्यर्थी कम कटऑफ होने के कारण छोटे जिलों में नियुक्ति पाते हैं। इसके बाद शादी या अन्य कारणों से शिक्षक अपने परिवार के पास तबादला करवाना चाहते हैं।