निःसंदेह प्रेरणा एप के विरोध का इससे अच्छा व प्रभावी तरीका दूसरा नहीं हो सकता कि कोई भी शिक्षक साथी एकेडमिक रिसोर्स पर्सन यानी ARP के पद के लिए आवेदन ही न करे।पर जैसा कि हम सभी जानते हैं कि ऐसी आदर्श स्थिति की सिर्फ कल्पना ही की जा सकती है कि बेसिक शिक्षा परिषद का हर एक शिक्षक प्रेरणा एप के मुद्दे पर पूरी तरह से प्राथमिक शिक्षक संघ के साथ हो जाय।ये वही शिक्षक हैं जो पुरानी पेंशन जैसे मुद्दे पर भी एक नहीं हो पाए जिसका लाभ आने वाली पीढ़ियों तक को मिल सकता है।
दरअसल जीवन मे कभी भी किसी भी दौर में,किसी भी परिस्थिति में आदर्श स्थिति सुलभ नहीं हो सकती।हमें आदर्श स्थिति के करीब संघर्षों के रास्ते पहुँचना होता है।इतिहास गवाह है कि जब-जब संघर्षों में इच्छाशक्ति रही है,सच्चाई रही है,निरंतरता रही है,समर्पण रहा है तो विपरीत परिस्थितियों के बावजूद संघर्षों को सफलता मिली है।एक से बढ़कर एक जनांदोलन हुए हैं इतिहास में जिनकी बदौलत लोगों ने काली अंधियारी रात से बाहर निकलकर एक नई उजियारी सुबह देखी है।पर आज के संघर्षों में कहीं न कहीं कुछ कमी रह जाती है परिणामस्वरूप वास्तविक सफलता थोड़ी दूर ही रह जाती है।
मेरे व्यक्तिगत विचार से कोई भी सामाजिक संघर्ष तब तक सफल नहीं हो सकता जब तक वह जनांदोलन में परिवर्तित न हो जाये यानी आंदोलन से लाभान्वित होने वाले अधिकतम लोग उस आंदोलन का हिस्सा होने चाहिए और ऐसा होने के लिए यह आवश्यक है कि आंदोलन से जुड़ने वाला हर एक सदस्य गुणात्मक रूप से सम्बन्धित लोगों को आंदोलन से जोड़े।आज का दौर वोट बैंक का दौर है,जिस पल सत्ता को एहसास होगा कि अब उनका वोट बैंक प्रभावित हो रहा है,अगला ही पल संघर्ष की विजय का पल होगा।जनांदोलन की भी अपनी विशेषता होती है,इसमे ठहराव के भी दौर आते हैं पर ये हार नहीं होनी चाहिए अपितु अपनी शक्ति को फिर से संचित कर आगे बढ़ने की तैयारी का समय होना चाहिए।
धन्यवाद,