शिक्षकों से अपेक्षाएं बड़ी, सुविधाएं दूर की कौड़ी, पदोन्नति और अंतर जनपदीय तबादले का अब भी इंतजार,, चार माह बाद भी नहीं बन पाई वरिष्ठता सूची 

शिक्षकों से अपेक्षाएं बड़ी, सुविधाएं दूर की कौड़ी, पदोन्नति और अंतर जनपदीय तबादले का अब भी इंतजार,, चार माह बाद भी नहीं बन पाई वरिष्ठता सूची
लखनऊ। परिषदीय स्कूलों के शिक्षकों से विभाग की अपेक्षाएं तो बड़ी हैं, लेकिन उनको दी जाने वाली सुविधाओं पर ध्यान नहीं है। शिक्षक लंबे समय से अंतर जनपदीय तबादले और पदोन्नति का इंतजार कर रहे हैं। हाल ही में पदोन्नति प्रक्रिया शुरू की गई है, जो पूरा होने का नाम नहीं ले रही है।
शिक्षक बताते हैं कि दस साल पहले विभाग ने पदोन्नति की थी। इसके बाद से पदोन्नति नहीं हुई है। इससे बड़ी संख्या में शिक्षक बिना प्रमोशन पाए ही सेवानिवृत्त हो गए। पिछले वर्ष कार्यवाही शुरू तो हुई, लेकिन पूरी होने का नाम नहीं ले रही है। दिसंबर अंत से शुरू शिक्षकों की वरिष्ठता की कवायद भी अब तक पूरी नहीं हो पाई है।
 वरिष्ठता तय न होने से दो बार जिले के अंदर तबादले की प्रक्रिया शुरू करने की तिथि टाली गई है। प्राथमिक से उच्च प्राथमिक स्कूलों में पदोन्नति न होने का खामियाजा शिक्षक ही नहीं छात्र भी भुगत रहे हैं। कई विद्यालयों में गणित व विज्ञान के शिक्षक ही नहीं हैं। शिक्षकों से एप के जरिए काफी काम व डाटा अपलोड कराए जाते हैं। लेकिन टैबलेट खरीद की प्रक्रिया 2019 से अभी चल ही रही है। शिक्षक सबसे ज्यादा परिवार गणना से परेशान हैं। इन सबका असर बच्चों की पढ़ाई पर भी पड़ रहा है।
 
 
पहले की सुविधाओं पर चली कैंची
एक तरफ तो शिक्षकों को पदोन्नति, जिले के अंदर तबादले जैसी सुविधाएं नहीं दी जा रही हैं। वहीं पहले से दी जा रही सुविधाओं पर भी कैंची चला दी गई है। प्रदेश में हर संवर्ग में अधिकारियों को पढ़ाई के लिए छुट्टी का प्रावधान है, लेकिन शिक्षकों के लिए यह सुविधा हाल ही में समाप्त कर दी गई। इसी तरह उनका प्रतिपूर्ति अवकाश भी समाप्त किया गया। शिक्षक काफी दिनों से चिकित्सा सुविधा देने की भी मांग कर रहे हैं। इस पर भी अब तक ठोस निर्णय नहीं हो पाया है।
वरिष्ठता संबंधी स्पष्ट प्रोफार्मा व निर्देश जारी किया गया था। उनकी नियुक्ति की मौलिक तिथि व इसमें एकरूपता होने पर गुणांक को आधार बनाना है। जल्द ही इसे फाइनल कर दिया जाएगा। इसके बाद जिले के अंदर तबादला प्रक्रिया शुरू होगी।-प्रताप सिंह बघेल, – सचिव, बेसिक शिक्षा परिषद
वर्षों से वरिष्ठता व जिले के अंदर तबादले के लिए शिक्षक इंतजार कर रहे हैं। विभाग जान-बूझकर इसे लंबित कर रहा है। मेडिकल व सीयूजी मोबाइल की सुविधा देने के लिए काफी दिनों से मांग चल रही है, पर ध्यान हीं दिया जा रहा है। -अनिल यादव, प्रदेश अध्यक्ष, यूपी बीटीसी शिक्षक संघ

‘बाबू’ बन गए परिषदीय शिक्षक, कैसे पढ़ाएं

बाबू’ बन गए परिषदीय शिक्षक, कैसे पढ़ाएं

फतेहपुर/खागा, आरटीई एक्ट के मुताबिक प्राथमिक शिक्षकों को चुनाव, जनगणना व आपदा कार्यों के अतिरिक्त अन्य गैर शैक्षणिक कार्य नहीं लिए जा सकते हैं लेकिन धरातल पर कानून का पालन होता नहीं दिख रहा है। बच्चों को शिक्षा देने की बजाए परिषदीय स्कूलों के शिक्षक इन दिनों अपने स्मार्टफोन से बाबुओं का काम करने में जुटे हैं। इन हालात में बच्चों की शिक्षा पर सवाल खड़े हो रहे हैं। अभिभावक भी शिक्षकों के ऐसे हालात की जानकारी पर अवाक हैं।

बेसिक शिक्षा विभाग जब से अपने कामों को आनलाइन मोड में करने लगा है तब से अधिकांश बेसिक शिक्षक मोबाइल फोन पर व्यस्त मिलते हैं। डीबीटी, आधार सत्यापन, प्रेरणा पोर्टल, साक्षरता परीक्षा की फीडिंग व यू डायस में बच्चों का विवरण भरने से लेकर यू ट्यूब सेशन ज्वाइन करने जैसे काम शिक्षकों द्वारा किए जा रहे हैं। ऐसे में कैसे बच्चों को पढ़ाएंगे आसनी से समझा जा सकता है।

20 मार्च से वार्षिक गृह परीक्षाओं का आयोजन होना है लेकिन शिक्षकों के पास बच्चों को पढ़ाने के समय नहीं है। शिक्षक 19 मार्च को होने वाली साक्षरता परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं। एनआईएलपी ऐप पर निरक्षरों की फीडिंग, रजिस्ट्रेशन प्रपत्र भराने के साथ परीक्षा की तैयारी की जा रही है। 6 से 14 आयु वर्ग के बच्चों को पढ़ाने का जिम्मा संभालने वाले शिक्षक अब 15 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों की साक्षरता का कामकाज भी देख रहे हैं। यूडायस प्लस में बच्चों का आनलाइन विवरण भी काफी समय जाया कर रहा है।

बुुद्धिजीवी बोले, शिक्षकों पर लदे काम से कैसी शिक्षा

पूरे मामले पर बुुद्धिजीवी कहते हैं कि डीबीटी, आधार सत्यापन, प्रेरणा पोर्टल, साक्षरता परीक्षा की फीडिंग व यू डायस में बच्चों का विवरण भरने जैसे कायोको शैक्षणिक कार्य कैसे माना जा सकता है। इन कार्यों से बच्चों को कहां शिक्षा प्राप्त हो रही है। साफ तौर पर कहा कि पढ़ाई के अलावा शिक्षकों से कराए जा रहे कार्यों को क्लर्कों से कराया जाना चाहिए लेकिन अधिकांश बेसिक स्कूलों में क्लर्क छोड़िए, सफाईकर्मी व चपरासी भी नहीं हैं। ऐसे में केवल और केवल बच्चों की पढ़ाई ही प्रभावित हो रही है।