68500 शिक्षक भर्ती के चयन में गड़बड़ी के आरोपित अफसर एक-एक करके बहाल होना शुरू हो गए हैं। परीक्षा नियामक प्राधिकारी कार्यालय उप्र की पूर्व सचिव को शासन बहाल कर चुका है, अब उसी तर्ज पर पूर्व रजिस्ट्रार को भी बहाल करने के आदेश हुए हैं। यह नौबत इसलिए आई क्योंकि शासन निलंबन अवधि में उन्हें आरोपपत्र नहीं दे सका। हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने इस कार्यशैली पर कड़ी नाराजगी जताते हुए पूर्व रजिस्ट्रार को कार्य पर लेने का आदेश दिया है।
बेसिक शिक्षा परिषद के प्राथमिक स्कूलों में 68500 सहायक अध्यापकों की लिखित परीक्षा के मूल्यांकन में गंभीर आरोप लगे थे। 13 अगस्त को लिखित परीक्षा का परिणाम आने के बाद यह प्रकरण इतना तूल पकड़ा कि प्रकरण मुख्यमंत्री तक पहुंचा। इस मामले में उच्च स्तरीय जांच हुई और पूर्व सचिव सुत्ता सिंह को सबसे पहले निलंबित किया गया। इसके बाद पूर्व रजिस्ट्रार जीवेंद्र सिंह ऐरी को भी निलंबित किया गया। ऐसे ही कुछ अन्य पर भी निलंबन व विभागीय जांच की कार्रवाई हुई। इसी बीच शासन ने लिखित परीक्षा परिणाम से असहमत अभ्यर्थियों से ऑनलाइन आवेदन लेकर उनकी उत्तर पुस्तिकाओं का दोबारा मूल्यांकन कराया और उसका परिणाम भी जारी हो चुका है। इसमें करीब चार हजार से अधिक को प्रदेश भर में नियुक्ति मिली है। शासन ने मुख्यमंत्री के निर्देश, जांच रिपोर्ट और अभ्यर्थियों का गुस्सा शांत करने के लिए जिन अफसरों को निलंबित करके विभागीय जांच शुरू कराई उससे मुंह फेर लिया। इसीलिए निलंबित अफसरों को तय समय में आरोपपत्र तक नहीं दिए जा सके। ज्ञात हो कि निलंबन के बाद छह माह में संबंधित अफसर को चार्जशीट दिया जाना जरूरी है। पूर्व सचिव सुत्ता सिंह ने हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ में चुनौती दी। कोर्ट ने उन्हें बहाल करने का आदेश दिया। शासन ने उन्हें शिक्षा निदेशक बेसिक कार्यालय से संबद्ध किया है अब तक उन्हें तैनाती नहीं दी जा सकी है। पूर्व सचिव के आदेश को आधार बनाकर पूर्व रजिस्ट्रार ऐरी भी कोर्ट पहुंचे। कोर्ट ने विभागीय अफसरों के रवैये पर कड़ी नाराजगी जताई है। कहा कि जिन अफसरों को निलंबित किया गया, उन्हें निलंबन भत्ता तक नहीं दिया गया। अक्टूबर 2018 में विभागीय जांच शुरू कराई गई और अब तक चार्जशीट नहीं दिया है। कोर्ट ने निलंबन आदेश रद कर दिया है। पूर्व रजिस्ट्रार को पूरा वेतन देने व कार्य पर वापस लेने का आदेश दिया है।