सुप्रीम कोर्ट ने व्यवस्था दी है कि उम्मीदवार का झूठा शपथ पत्र देना भ्रष्ट व्यवहार नहीं माना जाएगा, यदि उसने नामांकन पत्रों की जांच से पहले उसे दुरुस्त कर दिया हो। यह व्यवस्था महत्वपूर्ण है क्योंकि कुछ ही दिनों में लोकसभा और कुछ विधानसभाओं के चुनाव होने वाले हैं।
जस्टिस एसए बोबडे की अध्यक्षता वाली पीठ ने यह फैसला असम की एक विजयी उम्मीदवार की विशेष अनुमति याचिका पर दिया। कोर्ट ने कहा कि उम्मीदवार के अपना शपथपत्र नामांकन पत्रों की जांच से पहले ही सही कर दिया था और उसमें अपने आपराधिक मामलों की जानकारी दे दी थी। निर्वाचन अधिकारी ने दुरुस्त शपथपत्र को ही अंतिम माना और उसके आधार ही उसे उम्मीदवार घोषित किया। ऐसे में यह नहीं कह जा सकता कि चुनाव में उम्मीदवार ने अपराधिक मामलों को छिपाकर लोगों से वोट मांगे। इसलिए कोर्ट की राय में यह आरपी ऐक्ट, 1951 की धारा 123 (2) के तहत भ्रष्ट व्यवहार नहीं माना जाएगा। यह उम्मीदवार की ओर से एक गलती भर थी जिसे उसने नामांकन पत्रों की जांच से पहले सुधार लिया।
मोरंग की विधायक का मामला
डिब्रूगढ़ से चुनाव लड़ने वाली जीबोनतारा घटोवार पर आरोप था कि उन्होंने 2012 में विधानसभा चुनाव में मोरंग सीट से नामांकन पत्र दाखिल करते समय धारा 33-ए के तहत शपथपत्र में अपने आपराधिक मामलों की जानकारी नहीं दी थी। इस कानून के अनुसार चुनाव के उम्मीदवार को अपने खिलाफ लंबित ऐसे सभी मामलों की जानकारी देना जरूरी है, जिनमें दो साल या ज्यादा की सजा जा प्रावधान हो। घटोवार आईपीसी की धारा 420, 468 और 193 के तहत चल रहे मामलों में अभियुक्त थीं
विरोधी प्रत्याशी ने दी थी याचिका
घटोवार चुनाव में वह जीत गई, लेकिन विरोधी उम्मीदवार ने उनके खिलाफ चुनाव याचिका दायर कर दी। विरोधी उम्मीदवार ने आरोप लगाया कि घटोवार ने चुनाव में झूठा शपथपत्र दाखिल किया था जिसमें उन्होंने अपने अपराधिक मामलों की सूचनाएं छिपाई थीं। गुवाहाटी हाईकोर्ट ने यह याचिका खारिज कर दी और कहा कि इससे चुनाव पर कोई बड़ा प्रभाव नहीं पड़ा है। इसके बाद याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी।