कोरोना के मद्देनजर प्रदेश में बेसिक शिक्षा परिषद के स्कूलों को केंद्र सरकार की हरी झंडी मिलने के बाद ही खोला जाएगा। ऐसे में फिलहाल स्कूल खुलने के आसार नहीं हैं। गौरतलब है कि कोरोना संक्रमण के चलते परिषदीय स्कूलों का संचालन मार्च के दूसरे सप्ताह से नहीं हो रहा है। शैक्षिक सत्र 2019-20 में इन स्कूलों के बच्चों को बिना परीक्षा के ही अगली कक्षा के लिए उत्तीर्ण कर दिया गया था। चालू शैक्षिक सत्र में पठन-पाठन ऑनलाइन क्लास के जरिये हो रहा है। हालांकि माध्यमिक शिक्षा विभाग के स्कूलों में कक्षाओं का संचालन शुरू होने के बाद बेसिक शिक्षा विभाग ने भी दीपावली के बाद स्कूल खोलने की कवायद शुरू की थी।
इसके लिए चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग सहित अन्य संबंधित विभागों से राय भी मांगी गई थी। पर, सूत्रों का कहना है कि कुछ विभागों ने फिलहाल स्कूल नहीं खोलने की सलाह दी है। उधर, शासन में भी उच्च स्तर पर यह निर्णय लिया गया है कि राज्य सरकार की ओर से फिलहाल स्कूल खोलने का निर्णय नहीं लिया जाए। उधर, इस संबंध में बेसिक शिक्षा राज्यमंत्री सतीश द्विवेदी ने कहा कि केंद्र सरकार ने प्राथमिक व उच्च प्राथमिक विद्यालयों को खोलने के लिए अभी गाइडलाइन जारी नहीं की है। केंद्र की गाइडलाइन के बाद ही परिषदीय स्कूलों को खोला जाएगा।
School Reopen: 21 सितंबर से स्कूल-कॉलेज खोलने की तैयारी पर कहीं असमंजस तो कहीं है पूरी तैयारी, जानें किस राज्य में क्या है स्थिति?
झारखंड, हरियाणा समेत कई राज्य सरकारें चरणबद्ध तरीके से स्कूल खोलने की तैयारी जुट गई हैं, तो कुछ सरकारें अभी इसको लेकर असमंस में दिख रही हैं.
नई दिल्ली: कोरोना संकट के बीच अनलॉक-4 में केंद्र सरकार ने देशभर के स्कूल-कॉलेज खोलने की अनुमति दे दी है. 21 सितंबर से स्कूल-कॉलेज खोलने की केंद्र की गाडइडलाइंस के बाद अब राज्य सरकारें भी स्कूल खोलने के लिए नियम-कायदे बनाने में जुट गई हैं. केंद्रीय दिशानिर्देश के तहत 9वीं से 12वीं क्लास तक के बच्चे अपने माता-पिता से लिखित परमिशन लेकर स्कूल जा सकते हैं. झारखंड, हरियाणा समेत कई राज्य सरकारें चरणबद्ध तरीके से स्कूल खोलने की तैयारी जुट गई हैं, तो कुछ सरकारें अभी इसको लेकर असमंजस में दिख रही हैं.
हरियाणाहरियाणा सरकार ने 21 सितंबर से स्कूल खोलने की योजना बना ली है. हरियाणा के शिक्षा मंत्री कंवर पाल सिंह गुज्जर का कहना है कि प्रदेश एक बार फिर स्कूल खोलने को लेकर तैयार है. स्कूलों को सैनिटाइज करने के लिए बजट आवंटित किया जा चुका है. हालांकि राज्य सरकार ने करनाल और सोनीपत जिले में पहले सिर्फ क्लास 10 और 12 के छात्रों लिए स्कूल खोलने की बात कही है.
झारखंडझारखंड सरकार भी महामारी के बीच स्कूल खोलने के पक्ष में है. गृह मंत्रालय की गाइडलाइंस को ध्यान में रखते हुए यहां पहले क्लास 10वीं और 12वीं की पढ़ाई शुरू होगी. झारखंड के शिक्षा मंत्री वैद्यनाथ महतो का कहना है कि बच्चों की पढ़ाई का नुकसान हो रहा है. उन्होंने बताया, ‘एक सर्वे से हमें पता चला है कि शहरी क्षेत्रों में ऑनलाइन क्लास का महज 27 फीसदी छात्र ही लाभ ले पा रहे हैं. ग्रामीण इलाकों में तो यह आंकड़ा और भी खराब है. कुछ बच्चों के पास मोबाइल कनेक्शन भी नहीं है.’
आंध्र प्रदेशआंध्र प्रदेश में भी 21 सितंबर से स्कूल खुल रहे हैं. यहां 50 फीसदी टीचिंग और 50 फीसदी नॉन टीचिंग स्टाफ को स्कूल में बुलाया जा सकता है. क्लास 9 से 12 तक का कोई भी छात्र अपने पैरंट्स की लिखित अनुमति के बाद स्कूल जा सकता है और पढ़ाई कर सकता है.
उत्तर प्रदेशउत्तर प्रदेश में केंद्र सरकार की गाइडलाइंस को ध्यान में रखकर स्कूल-कॉलेज खोले जा सकते हैं. हालांकि यूपी के उप मुख्यमंत्री दिनेश शर्मा ने कहा कि प्रदेश में 15 सितंबर तक कोरोना की स्थिति पर नजर रखी जाएगी, इसके बाद ही निर्णय लिया जाएगा कि स्कूल खोले जाएंगे या नहीं.
फिलहाल अभी 10वीं, 12वीं के लिए दूरदर्शन यूपी और 9वीं, 11वीं क्लास के लिए स्वयंप्रभा चैनल के माध्यम से क्लासेज चल रही है. हर हफ्ते क्लास का टाइमटेबल तय किया जाता है. वहीं 8वीं तक के बच्चों के लिए व्हाट्सएप ग्रुप या अन्य किसी माध्यमों से क्लास चलाई जा रही हैं.
दिल्ली में बंद रहेंगे स्कूलदिल्ली सरकार ने कोरोना महामारी के कारण 30 सितंबर तक सभी स्कूल बंद रखने का निर्णय लिया है. दिल्ली शिक्षा निदेशालय के अनुसार, सभी स्कूलों को 30 सितंबर तक बंद रखा जाएगा. कंटेंमेंट जोन के बाहर सरकारी स्कूलों में 9वीं से 12वीं क्लास तक के छात्रों को स्वैच्छिक आधार पर स्कूल जाने की अनुमति दी जा सकती है. हालांकि छात्रों के लिए ऑनलाइन क्लास और टीचिंग एक्टिविटी हमेशा की तरह जारी रहेंगी.
उत्तराखंड सरकार की गाइडलाइंसकोरोना महामारी के मद्देनजर उत्तराखंड में स्कूल, कॉलेज 30 सितंबर तक बंद रहेंगे. राज्य सरकार ने पूरी तरह से स्कूल खोलने की अभी अनुमति नहीं दी है. दरअसल, उत्तराखंड में कुल 28 हजार से ज्यादा कोरोना संक्रमण के मामले आ चुके हैं. इनमें से करीब नौ हजार लोग अभी भी बीमारी से संक्रमित हैं, इनका ईलाज चल रहा है.
इन राज्यों के अलावा तमिलनाडु सरकार भी अभी स्कूल खोलने के पक्ष में नहीं है. छत्तीसगढ़ में स्कूल खोलने पर कोई विचार नहीं हुआ है, फिलहाल ऑनलाइन क्लास और यूनिक ऑफलाइन क्लासेज पर जोर देने कोशिश की जा रही है. बिहार में अभी इसपर चर्चा नहीं हुई है. हालांकि हिमाचल प्रदेश में केंद्र की गाइडलाइंस के आधार पर स्कूल खोले जा सकते हैं.
वर्ष 2022 से होगी सीखने सिखाने वाली पढ़ाई, मार्कशीट न बनेगी परिवार की प्रतिष्ठा
नई दिल्ली : राष्ट्रीय शिक्षा नीति पर अमल की तैयारियों के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को साफ किया कि साल 2022 से छात्रों की पढ़ाई नई शिक्षा नीति के तहत तैयार हो रहे पाठ्यक्रम से ही होगी। शिक्षा व्यवस्था की मौजूदा समस्याओं का जिक्र करते हुए पीएम ने कहा कि एक बड़ी समस्या यह भी है कि हमारे देश में सीखने पर आधारित शिक्षा की जगह मार्क्स और मार्कशीट वाली शिक्षा व्यवस्था हावी है। सच्चाई यह है कि मार्कशीट अब मानसिक प्रेशर शीट और परिवार की प्रेस्टीज शीट बन गई हैं यानी इसे प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया गया है।
प्रधानमंत्री ने 21वीं सदी में स्कूल शिक्षा से जुड़े शिक्षकों के दो दिवसीय सम्मेलन को वचरुअल रूप से संबोधित करते हुए कहा कि पढ़ाई से मिल रहे तनाव से अपने बच्चों को निकालना ही राष्ट्रीय शिक्षा नीति का एक मुख्य उद्देश्य है। उन्होंने कहा कि परीक्षा इस तरह होनी चाहिए कि छात्रों पर बेवजह का दबाव न पड़े। साथ ही कोशिश यह भी होनी चाहिए कि केवल एक परीक्षा से छात्रों का मूल्यांकन न किया जाए, बल्कि उनके विकास के अलग-अलग पहलुओं से जुड़ा मूल्यांकन हो। यही वजह है कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति में छात्रों को मार्कशीट की जगह उनके सभी पहलुओं को शामिल करते हुए एक रिपोर्ट कार्ड का प्रस्ताव किया गया है, जिसमें छात्र की विशिष्ट क्षमता, योग्यता, रवैया, प्रतिभा, स्किल (कौशल), क्षमता शामिल होगा।
पीएम ने कहा ‘जब हम आजादी के 75 वर्ष पूरे होने का जश्न मनाएंगे तो छात्र इस नए पाठ्यक्रम के साथ नए भविष्य की तरफ कदम बढ़ाएंगे।’ यह पाठ्यक्रम दूरदर्शी, भविष्य निर्माण करने वाला और वैज्ञानिक होगा। वहीं मातृभाषा में पढ़ाई पर सवाल खड़ा करने वालों को भी पीएम ने जवाब दिया और कहा कि यहां हमें यह समझने की जरूरत है कि भाषा शिक्षा का माध्यम है। भाषा ही सारी शिक्षा नहीं है। किताबी पढ़ाई में फंसे-फंसे कुछ लोग यह फर्क भूल जाते है।
एजुकेशन इन 21 फर्स्ट सेंचुरी” कॉन्क्लेव में पूरे देश के शिक्षा मंत्रियों एवं शिक्षकों को संबोधित किया। उन्होंने कहा कि नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 21वीं सदी के भारत को नई दिशा देने वाली साबित होगी।
3 शिक्षकों को मिलेगा राष्ट्रीय शिक्षक पुरस्कार । शिक्षक दिवस पर 5 सितंबर को प्रदेश के 3 शिक्षकों को राष्ट्रीय शिक्षक पुरस्कार 2020 से सम्मानित किया जाएगा इनमें 2 शिक्षक बेसिक शिक्षा से जबकि एक शिक्षक माध्यमिक शिक्षा से है।
नई दिल्ली: सरकार कोरोना संकट के बीच स्कूल खोलने में गड़बड़ी नहीं दिखाएगी। एचआरडी मिनिस्ट्री ने साफ किया है कि अभी तत्काल स्कूल-कॉलेज खोलने के संभावनाएं नहीं हैं। दरअसल पिछले दिनों स्वास्थ्य विभाग की मीटिंग में यह तर्क सामने आया था कि एक सितंबर से चरणों में खोले जा स्कूल सकते हैं और इसके लिए कुछ विकल्प भीसुझाए गए थे। सूत्रों के अनुसार, सोमवार के एचडी मिनिस्ट्री में हुई मीटिंग में तय किया गया है कि अभी स्कूलों को खोलने पर विचार नहीं किया जाएगा। सहमति बनी कि कोरोना के हालात अभी भी गंभीर है, ऐसे में अभी किसी भी विकल्पों के साथ इन्हें खोलने का जोखिम नहीं लिया जा सकता है। कमेटी ने पहले इस विकल्प पर विचार किया था कि 1 सितंबर से हाई स्कूलों के चरणों में खोला जाए और तीन महीने के चरणवद्ध तरीके से की कक्षाएं को भी खोला जाएगा।
लेकिन अधिकारियों के अनुसार इसमें डेट को लेकर कोई सहमति नहीं बनी थी और एक मॉडल के तौर पर इस पर बातचीत की गई थी। कई राज्यों ने भी स्कूलों को खोलने के प्रति अपनी चिंता जाहिर की है। अधिकारियों के अनुसार हालात की समीक्षा नियमित रूप से होगी और जब हालात वास्तव में सामान्य होंगे तो इस बारे में सभी से सहमति लेकर स्कूलों को खोलने पर फैसला होगा। वहीं सोमवार को पीएम नरेंद्र मोदी ने वाढ़ प्रभावित 6 राज्यों के सीएम के साथ विडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से मीटिंग की। इनमें बिहार, यूपी, महाराष्ट्र, असम, केरल और कर्नाटक के सीएम शामिल थे। चर्चा के दौरान कोरोना के हालात पर भी चर्चा हुई।
पीएम मोदी ने शुक्रवार को बताया कि नई शिक्षा नीति के तहत स्कूली शिक्षा व्यवस्था में क्यों 10+2 सिस्टम को खत्म कर 5+3+3+4 सिस्टम को लाया जा रहा है। मानव संसाधन विकास मंत्रालय और यूजीसी की ओर से नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति पर आयोजित सम्मेलन में अपने संबोधन के दौरान उन्होंने कहा कि बदलते समय के साथ एक नई विश्व व्यवस्था खड़ी हो गई है। एक नया ग्लोबल स्टैंडर्ड भी तय हो रहा है। बदलते ग्लोबल स्टैंडर्ड के हिसाब से भारत के एजुकेशन सिस्टम में बदलाव करने भी बहुत जरूरी है।
स्कूल से 10+2 को बदलकर 5+3+3+4 कर देना इसी दिशा में उठाया गया कदम है। हमें अपने स्टूडेंट्स को ग्लोबल सिटीजन बनाना है। हमें इस बात का भी ध्यान रखना है कि वह ग्लोबल स्टूडेंट्स बनने के साथ-साथ अपनी जड़ों से भी जुड़े रहें। नयी शिक्षा नीति में ऐसा प्रावधान किया गया है कि छात्रों को ग्लोबल सिटीजन बनाने के साथ साथ उनको अपने जड़ों से भी जोड़कर रख जाएगा।
गौरतलब है कि नई शिक्षा नीति में 10+2 के फार्मेट को पूरी तरह खत्म कर दिया गया है। अभी तक हमारे देश में स्कूली पाठ्यक्रम 10+2 के हिसाब से चलता है लेकिन अब ये 5+ 3+ 3+ 4 के हिसाब से होगा। इसका मतलब है कि प्राइमरी से दूसरी कक्षा तक एक हिस्सा, फिर तीसरी से पांचवीं तक दूसरा हिस्सा, छठी से आठवीं तक तीसरा हिस्सा और नौंवी से 12 तक आखिरी हिस्सा होगा। यहां समझें कि क्या है 5+3+3+4 फार्मेट का सिस्टम-
नई शिक्षा नीति- स्कूल शिक्षा का नया ढांचा, 5+3+3+4 फार्मूला
फाउंडेशन स्टेज
पहले तीन साल बच्चे आंगनबाड़ी में प्री-स्कूलिंग शिक्षा लेंगे। फिर अगले दो साल कक्षा एक एवं दो में बच्चे स्कूल में पढ़ेंगे। इन पांच सालों की पढ़ाई के लिए एक नया पाठ्यक्रम तैयार होगा। मोटे तौर पर एक्टिविटी आधारित शिक्षण पर ध्यान रहेगा। इसमें तीन से आठ साल तक की आयु के बच्चे कवर होंगे। इस प्रकार पढ़ाई के पहले पांच साल का चरण पूरा होगा।
प्रीप्रेटरी स्टेज
इस चरण में कक्षा तीन से पांच तक की पढ़ाई होगी। इस दौरान प्रयोगों के जरिए बच्चों को विज्ञान, गणित, कला आदि की पढ़ाई कराई जाएगी। आठ से 11 साल तक की उम्र के बच्चों को इसमें कवर किया जाएगा।
मिडिल स्टेज
इसमें कक्षा 6-8 की कक्षाओं की पढ़ाई होगी तथा 11-14 साल की उम्र के बच्चों को कवर किया जाएगा। इन कक्षाओं में विषय आधारित पाठ्यक्रम पढ़ाया जाएगा। कक्षा छह से ही कौशल विकास कोर्स भी शुरू हो जाएंगे।
सेकेंडरी स्टेज
कक्षा नौ से 12 की पढ़ाई दो चरणों में होगी जिसमें विषयों का गहन अध्ययन कराया जाएगा। विषयों को चुनने की आजादी भी होगी। पहले यह थी व्यवस्था
पहले सरकारी स्कूलों में प्री-स्कूलिंग नहीं थी। कक्षा एक से 10 तक सामान्य पढ़ाई होती थी। कक्षा 11 से विषय चुन सकते थे।
नई शिक्षा नीति पर पीएम मोदी के भाषण की अन्य अहम बातें
पीएम ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति 21वीं सदी के भारत की और नए भारत की नींव तैयार करने वाली है। प्रधानमंत्री ने इस बात पर संतुष्टि जताई की देश के किसी भी क्षेत्र या वर्ग से भेदभाव संबंधी कोई शिकायत नहीं आई। उन्होंने कहा, ”हर देश अपनी शिक्षा व्यवस्था को अपने राष्ट्रीय मूल्यों के साथ जोड़ते हुए, अपने राष्ट्रीय ध्येय के अनुसार सुधार करते हुए चलता है। मकसद ये होता है कि देश की शिक्षा प्रणाली अपनी वर्तमान औऱ आने वाली पीढ़ियों का भविष्य तैयार रखे और तैयार करे।”
यह ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षकों के लिए प्रोत्साहन का वादा भी करता है, खासकर उन क्षेत्रों में जो वर्तमान में गुणवत्ता शिक्षकों की भारी कमी का सामना कर रहे हैं। नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) के अनुसार, स्कूलों में शिक्षकों के चयन के लिए क्लास में डेमो देना या इंटरव्यू एक जरूरी मानदंड होगा।
नई शिक्षा नीति 29 जुलाई को आई थी। “इन इंटरव्यू का उपयोग स्थानीय भाषा में पढ़ाने में आसानी और प्रतिभा का आकलन करने के लिए किया जाएगा, ताकि प्रत्येक स्कूल / स्कूल परिसर में कम से कम कुछ शिक्षक हों जो स्थानीय भाषा और छात्रों की अन्य प्रचलित घरेलू भाषाओं में छात्रों के साथ बातचीत कर सकें। टीचर्स का सिलेक्शन राज्य शिक्षक पात्रता परीक्षा या केंद्रीय शिक्षक पात्रता परीक्षा के माध्यम से किया जाता है।
एनईपी ने इन परीक्षणों में सुधार के लिए नए दिशानिर्देश तय किए हैं। शिक्षक पात्रता परीक्षा (टीईटी) सामग्री और शिक्षाशास्त्र दोनों के संदर्भ में बेहतर परीक्षा सामग्री को विकसित करने के लिए मजबूत किया जाएगा। स्कूल शिक्षा के सभी चरणों (फाउंडेशनल, प्रारंभिक, मध्य और माध्यमिक) में शिक्षकों को शामिल करने के लिए टीईटी को भी बढ़ाया जाएगा।
इसमें बी.एड. शिक्षकों के लिए न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता के रूप में डिग्री। 2030 तक, शिक्षण के लिए न्यूनतम डिग्री योग्यता 4-वर्षीय एकीकृत B.Ed डिग्री होगी। नीतिगत दस्तावेज़ में कहा गया है कि घटिया स्टैंड-अलोन शिक्षक शिक्षा संस्थानों (TEIs) के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी। नई शिक्षा नीति शिक्षकों के लिए एक सामान्य राष्ट्रीय व्यावसायिक मानक (एनपीएसटी) को राष्ट्रीय शिक्षा परिषद द्वारा 2022 तक विकसित किया जाएगा, यह काम एनसीईआरटी, एससीईआरटी, शिक्षकों और विशेषज्ञ संगठनों के साथ सभी स्तरों और क्षेत्रों के परामर्श के बाद होगा। स्थानीय भाषा में शिक्षण प्रदान करने पर, नीति का उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों से नौकरी के इच्छुक उम्मीदवारों के लिए छात्रवृत्ति प्रदान करना है।
इसके माध्यम से यह परिकल्पना की गई है कि स्थानीय भाषा में कुशल वाले उच्च योग्य शिक्षकों को शिक्षण क्षेत्र में जोड़ा जाएगा। यह ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षकों के लिए प्रोत्साहन का वादा भी करता है, खासकर उन क्षेत्रों में जो वर्तमान में गुणवत्ता शिक्षकों की भारी कमी का सामना कर रहे हैं।
आसपास के क्षेत्र में आवास सुविधा जैसे प्रोत्साहन या आवास भत्ते में वृद्धि प्रमुख प्रोत्साहन के बीच होगी जो ग्रामीण क्षेत्रों में पढ़ाने वालों को प्रदान की जाएगी। प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में एक बैठक में केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा अनुमोदित एनईपी को 1986 में बनाई गई शिक्षा नीति की जगह दी गई, और इसका उद्देश्य स्कूल और उच्च शिक्षा प्रणालियों में परिवर्तनकारी सुधारों का मार्ग प्रशस्त करना है।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 में शिक्षा व्यवस्था में बड़े बदलावों की बात कही गई है. इस शिक्षा नीति में दिया गया है कि अब आने वाले कुछ सालों में शिक्षा की सबसे मजबूत कड़ी अध्यापक को सबसे मजबूत बनाया जाएगा. इसके लिए बीएड प्रोग्राम में बड़े बदलाव की बात कही गई है. जानिए नई नीति में शिक्षकों की गुणवत्ता को बढ़ाने के लिए क्या प्रावधान किए जाएंगे ।
नई शिक्षा नीति के अनुसार जल्द ही शिक्षकों के लिए राष्ट्रीय स्तर का मानक तैयार होगा. शिक्षकों के लिए अगले दो साल के भीतर न्यूनतम डिग्री बीएड तय होगी, जो उनकी शैक्षणिक योग्यता के आधार पर एक से चार साल की होगी. ये एमए के बाद एक साल और इंटरमीडिएट के बाद चार साल की होगी.
शिक्षा नीति में वर्ष 2022 तक नेशनल काउंसिल फॉर टेक्निकल एजुकेशन (एनसीटीई) को टीचर्स के लिए एक समान मानक तैयार करने को कहा गया है. ये पैरामीटर नेशनल प्रोफेशनल स्टैंडर्ड फॉर टीचर्स कहलाएंगे. काउंसिल यह कार्य जनरल एजुकेशन काउंसिल के निर्देशन में पूरा करेगी. सरकार ने कहा कि साल 2030 तक सभी बहुआयामी कालेजों और विश्वविद्यालयों में शिक्षकों के पठन पाठन के कोर्स को संस्थानों के अनुरूप अपग्रेड करना होगा. साल 2030 तक शिक्षकों के लिए न्यूनतम डिग्री बीएड होगी, इसकी अवधि चार साल हो जाएगी.
बीएड के लिए कुछ इस तरह से व्यवस्था की जाएगी. बीएड की दो साल की डिग्री उन ग्रेजुएट छात्रों को मिले जिन्होंने किसी खास सब्जेक्ट में चार साल की पढ़ाई की हो. चार साल की ग्रेजुएट की पढ़ाई के साथ एमए की भी डिग्री प्राप्त करने वाले छात्रों को बीएड की डिग्री एक साल में ही प्राप्त हो जाएगी, लेकिन इसके जरिये विषय विशेष के शिक्षक बन पाएंगे.बता दें कि नई शिक्षा नीति में ये कहा गया है कि बीएड प्रोग्राम में शिक्षा शास्त्र की सभी विधियों को शामिल किया जाए. इसमें साक्षरता, संख्यात्मक ज्ञान, बहुस्तरीय अध्यापन और मूल्यांकन को विशेष रूप से सिखाया जाएगा. इसके अलावा टीचिंग मेथड में टेक्नोलॉजी को खास तौर पर जोड़ा जाएगा.
इस शिक्षा नीति में के. कस्तूरीरंगन कमेटी की उन सभी सिफारिशों को केंद्रीय मंत्रिमंडल ने मंजूर किया है जिसमें शिक्षकों के प्रशिक्षण में व्यापक सुधार की बात कही गई थी. इसमें सभी शिक्षा कार्यक्रमों को विश्वविद्यालयों या
कॉलेजों के स्तर पर शामिल करने की सिफारिश की थी । कमेटी की उन सिफारिशों को भी मान लिया गया है जिसमें स्तरहीन शिक्षक-शिक्षण संस्थानों को बंद करने की बात कही गई थी. अब सभी शिक्षण तैयारी/ शिक्षा कार्यक्रमों को बड़े बहुविषयक विश्वविद्यालयों/ कॉलेजों में स्थानांतरित करके शिक्षक शिक्षण के क्षेत्र में बड़े पैमाने पर बदलाव का भी प्रस्ताव रखा है. इसके अलावा 4-वर्षीय एकीकृत चरण वाले विशिष्ट बी.एड. कार्यक्रम के माध्यम से शिक्षकों को अंततः न्यूनतम डिग्री की योग्यता प्राप्त हो सकेगी.
देश में एक जैसे शिक्षक और एक जैसी शिक्षा को आधार बनाकर इस समिति की सिफारिशाें को लागू किया गया है. अब विद्यालयों में स्थानीय ज्ञान और लोक विद्या जैसी जानकारियों के लिए स्थानीय पेशेवरों को अनुबंध पर लिया जा सकता है.
राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 में नर्सरी से 12वीं तक की पढ़ाई को 5+3+3+4 के फॉर्मूले के तहत चार चरणों में बाँटा गया है। पहले पाँच साल को फाउंडेशन स्टेज माना जा रहा है, जिसमें तीन साल की प्रारंभिक बाल्यवस्था देखभाल और शिक्षा (ECCE) को भी शामिल किया गया है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 में प्रारंभिक बाल्यवस्था में देखभाल और शिक्षा को इतना महत्व देना एक उल्लेखनीय बात है।
इसका लक्ष्य है कि जब पहली कक्षा में किसी बच्चे का नामांकन हो तो ‘स्कूल जाने के लिए पूरी तरह तैयार’ हो। यानि राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 ‘स्कूल रेडिनेस’ को एक जरूरत की तरह देखती है। इसके साथ ही साथ ‘स्कूल रेडिनेस’ वाले कार्यक्रम बनाने और क्रियान्वित करने की तरफ संकेत भी करती है। इसे एक सकारात्मक क़दम कहा जा सकता है। ज़मीनी सच्चाइयों के मद्देनज़र यह एक बेहद चुनौतीपूर्ण काम है, लेकिन अच्छी बात है कि भारत में शिक्षा की दिशा और दशा निर्धारित करने वाली नीति बनाते समय इस चुनौती को स्वीकार किया गया है।
इस संदर्भ में कहा गया है कि बच्चों के मस्तिष्क का 85 प्रतिशत विकास 6 वर्ष की आयु से पहले ही हो जाता है। इसलिए प्रारंभिक बाल्यवस्था देखभाल और शिक्षा (ECCE) पर ध्यान देने की जरूरत है। यह भी स्वीकार किया गया है कि प्राथमिक शिक्षा से पहले मिलने वाली ‘विद्यालय पूर्व शिक्षा’ (जिसे निजी स्कूलों के संदर्भ में नर्सरी और एलकेजी व यूकेजी कहते हैं) से बहुत से विद्यार्थी वंचित हैं, इसलिए उनको यह अवसर उपलब्ध कराने की जरूरत है। वर्तमान में आँगनबाड़ी के माध्यम से बच्चों के पोषण और पूर्व-प्राथमिक शिक्षा की जरूरत को पूरा करने का प्रयास किया जा रहा है। 2030 तक इस लक्ष्य को हासिल करने की बात राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020में कही गई है।
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