Covid-19 India: देश को अब पिछले साल जैसे लॉकडाउन की क्यों है जरूरत ?

यूपी से खबर आ रही है कि 24 घंटे के भीतर सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी के 2 विधायकों की मौत हो गई है. तथा सैकड़ों अध्यापकों की जान चली गई है। कोरोना का वायरस मरने वाले का स्टेटस नहीं देख रहा है. मरने वालों में वीआईपी लोगों के नाम भी उसी रेशियो में आ रहे है जितना जनसाधारण के. जम्मू से लेकर कन्याकुमारी तक और अहमदाबाद से लेकर गौहाटी तक लोग आक्सिजन सिलिंडर के लिए भटक रहे हैं, थोक के भाव में मरीज आॉक्सिजन न मिलने के चलते प्राण त्याग दे रहे है. आरटी पीसीआर टेस्ट के लिए आपको मजबूत सिफारिश करवानी होगी तभी आपका टेस्ट हो सकेगा पर रिजल्ट कब मिलेगा सिफारिश के बाद भी कन्फर्म नहीं है. रेमडेसिविर को तो भूल जाइये छोटी पैरासिटामॉल भी आपको मुश्किल से मिल रहा है.

अब हवा में पहुंच गया नया वैरिय़ंट

हेल्थ एक्सपर्ट ने यह मान लिया है कि कोरोना के वायरस हवा में घुल जा रहे हैं. इधर कई डॉक्टरों ने भी कहा है गर्मियों में तो सांसों की हवा वाष्प बनकर हवा में उड़ जाएगी. इस कारण माना जा रहा खुली हवा में कोरोना वायरस फैलकर बहुत तेजी से लोगों को बीमार बनाएगा. इसलिए अभी से आम जनता को सावधान किया जा रहा है कि वे खुले में डबल मास्क का इस्तेमाल करें. इस तरह बीमारी को और फैलने से रोकने के लिए यह जरूरी है कि संपूर्ण लॉकडाउन का फैसला ले. कुछ दिन का लॉकडाउन या रात की बंदी इस नए खतरे से मुकाबला नहीं कर सकता. भारत की संकरी गलिया और घनी आबादी , भरे बाजार , पुराने स्टाइल के अॉफिस इस खतरे से लड़ने के लिए तैयार नहीं हैं. इस तरह संपूर्ण लॉकडाउन ही अंतिम विकल्प दिख रहा है.

डबल म्यूटेंट के बाद अब ट्रिपल म्यूटेंट का खतरा बढ़ा

हेल्थ एक्सपर्ट का मानना है कि भारत में ट्रिपल म्यूटेंट का खतरा बहुत बढ़ गया है. बंगाल , दिल्ली और महाराष्ट्र में इस वैरियंट के मरीज मिले हैं. इस तीन मुखी कोरोना रूपी रावण से मुकाबला करना बहुत कठिन है. इसके बारे में बताया जा रहा है कि यह अभी लग रही सभी प्रकार की वैक्सीन को बेअसर कर देता है और इसके फैलने की स्पीड डबल म्यूटेंट वाले वायरस से भी तेज है. अभी देश में मुंबई और लखनऊ और दिल्ली में जिस तेजी से कोरोना बढ़ा है और जिस तेजी से मरीज पर हमला कर रहा है उसके पीछे डबल म्यूटेंट वाले वायरस को कारण माना जा रहा है. इतना तय है कि तीसरा वैरिएंट इस डबल वैरियेंट से खतरनाक तो रहेगा ही. दुनिया के पंद्रह देशों में पहुंच चुके इस वैरिएंट का जब तक कोई तोड़ न ढूढ़ न लिया जाए तब देश में संपूर्ण लॉकडाउन करना ही उचित रहेगा.

तीन लाख हर रोज केस के लिए मुफीद नहीं आंशिक लॉकडाउन

आम तौर पर अगर देश में हर रोज नए केस बढ़ने की संख्या 10 से 20 हजार तक होती तो एक बार वीकेंड लॉकडाउन , रात्रि कर्फ्यू , और कुछ प्रतिबंधों के साथ वीकली लॉकडाउन चल जाता पर अब स्थितियां गंभीर हो चुकी हैं. कोरोना का विस्फोट हो चुका है.पिछले तीन दिनों से रह रोज कोरोना के नए केस की संख्या 3 लाख से ऊपर जा रही है. कैजुअल्टी भी हर रोज बढ़ रही है. इसका मतलब है कि आंशिक लॉकडाउन काम नहीं कर रहा है. देश को संपूर्ण लॉकडाउन की जरूरत है.

दवाओं और आक्सिजन के लिए त्राहि-त्राहि
प्रशासनिक शिथिलता , दवाओं की कमी और सप्लाई चेन टूटने के चलते जीवनरक्षक दवाएं कहां जा रही हैं किसी को समझ में नहीं आ रहा है. आक्सिजन के अभाव में हो रही मौतें लगातार एक हफ्ते से ऊपर बीत जाने के बाद भी रुका नहीं है इसका मतलब स्पष्ट है कि हम कारगर उपाय करने में सक्षम साबित नहीं हो सके हैं. ब्लेक मार्केट में अगर रेमेडेसिविर मिल रहा है तो इसका मतलब है कि प्रशासन लुंज-पुंज हो चुका है. हो सकता है कि संपूर्ण लॉकडाउन के चलते कुछ मरीज कम हो और कालाबाजारियों पर नियंत्रण करने मे आसानी हो सके.
देश में कुल 7000 टन आक्सिजन का हर रोज उत्पादन हो सकता है. जिसमें महाराष्ट्र अकेले हर रोज 1350 टन कंज्यूम कर रहा है, गुजरात 500 टन , मध्यप्रदेश को भी 250 टन चाहिए. कमी को देखते हुए सभी इंडस्ट्री में सरकार ने आक्सिजन की सप्लाई को रोक दिया है. इसके साध ही देश में सिलिंडरों और क्रायोजेनिक टैंकरों की भी कमी है. इस तरह आक्सिजन की फैक्ट्रियों से हॉस्पिटल के बेड तक पहुंचने में 6 से 8 दिन का समय लग जा रहा है. संपूर्ण लॉकडाउन इस समय को कम कर सकेगा.

स्वास्थ्य कर्मियों और पुलिस वालों सहित फ्रंट लाइन वर्कर को थोड़ी राहत
लगातार कोरोना से लड़ते हुए फ्रंटलाइन वर्कर टूटने के कगार पर हैं. अस्पताल कर्मियों और पुसिल कर्मि्यों पर कई गुना बोझ है. आधे से अधिक कर्मी या तो बीमार हैं , बहुत से जान भी गंवा चुके हैं. संख्या बल में कमी और काम के घंटों में बढ़ोतरी और लगातार ड्यूटी से अब इन्हें कुछ राहत चाहिए. संपूर्ण लॉकडाउन इसमें सहायक हो सकता है.

हॉस्पिटल बेड का रेशियो पाकिस्तान और बांग्लादेश से भी कम

देश भर के अस्पतालों को कोरोना मरीजों के लिए रिजर्व करने के बाद भी बेड की कमी है. भारत में अस्पतालों में बेड की उपलब्धता वैसै भी बहुत कम है. आजादी मिलने के सत्तर साल बाद भी हमारे देश प्रति दस हजार लोगों पर केवल 5 बेड उपलब्ध है. दुनिया में केवल 12 देश ऐसे हैं जिनकी स्थित भारत से भी खराब हैं. हॉस्पिटल बेड के मामले में पाकिस्तान और बांग्लादेश की स्थित भी भारत से बेहतर है. हॉस्पिटल के बेड के मामले में ह्यूमन डेवलपमेंट रिपोर्ट 2020 के अनुसार दुनिया के 167 देशों में भारत का स्थान 155 वां है. इतने कम बेड के साथ अगर यूरोप और अमेरिका की तरह कोरोना संक्रमण से मुकाबले के लिए आंशिक लॉकडाउन का सहारा ले रहे हैं तो यह भारत की जनता के साथ अन्याय होगा. देश में तुरंत लॉकडाउन हो सकता है कि बेड के लिए तड़पते देश के लिए कुछ राहत लेकर आए.

व्यापारियों की ओर से ही आ रही लॉकडाउन की डिमांड
देश का व्यापारी समुदाय खुद इस बार टोटल लॉकडाउन की डिमांड कर रहा है. चाहे लखनऊ हो या दिल्ली व्यापारी वर्ग खुद आगे आकर डिमांड ही नही कर रहा है बल्कि आपसी सहमति से व्यापारी संगठनों ने शटर गिरा दिए हैं. यूपी सरकार ने हाई कोर्ट के आदेश के बाद भी लॉकरडाउन नहीं किए तो लखनऊ के व्यापारियों ने अपनी ओर से खुद दुकानें बंद कर दी. इसी तरह दिल्ली में चांदनी चौक के दुकानदारों ने अापसी सहमति से दुकानें बंद कर दी थीं. बाद में दिल्ली सरकार ने एक हफ्ते का लॉकडाउन की भी घोषणा कर दी. लोग अब समझ रहे हैं जान है तो जहान है.

मई के दूसरे सप्ताह में कोरोना का पीक
हेल्थ एक्सपर्ट बता रहे हैं कि मई के दूसरे सप्ताह मे कोरोना का पीक हो सकता है. एक आईआईटी के प्रख्यात मैथमेटिशियन ने अपनी गणितिय आधार पर आशंका जताई है कि मई के दूसरे सप्ताह में करीबह 35 लाख एक्टिव केस हो सकते हैं. अगर ये सही साबित होता है निश्चित रूप से इसका मुकाबला करना बहुत कठिन होगा. देश भर का संपूर्ण लॉकडाउन हो सकता है कि कुछ राहत मिल जाए.

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