सोशल मीडिया पर प्रचार सियासी दलों का भविष्य तय करने में निर्णायक भूमिका निभा सकता है। चुनाव आयोग ने इसी के मद्देनजर पहली बार सोशल मीडिया प्रचार को आचार संहिता के दायरे में लाने की घोषणा की है। आइए जानें इस दिशा में उसे क्या चुनौतियां झेलनी पड़ सकती हैं…
पार्दशिता लाने की कवायद
- राजनीतिक दलों का प्रचार करने वालों की निजी जानकारियां और लोकेशन प्रमाणित करने की व्यवस्था शुरू
- प्रत्याशियों के सोशल मीडिया अकाउंट सार्वजनिक किए जाएंगे, प्रचार पर खर्च पैसों का ब्योरा देना भी जरूरी
- अफवाहों और नफरत भरे भाषणों पर रोक लगाने के लिए सियासी विज्ञापनों को प्रमाणित करवाना अनिवार्य
- आपत्तिजनक सामग्री की शिकायत के लिए व्यापक निगरानी व्यवस्था तैयार की, ताकि इन्हें तुरंत हटाया जा सके
चुनाव आयोग की चुनौतियां-
- सोशल मीडिया पर चुनाव संबंधी सामग्री सियासी दलों के आईटी सेल की बजाय थर्ड पार्टी एजेंसियों से जारी हो रही
- गूगल, फेसबुक, ट्विटर, शेयरचैट जैसी साइटों पर आपत्तिजनक सामग्री पोस्ट करने वालों के खिलाफ कार्रवाई करने की बाध्यता नहीं
- आपत्तिजनक सामग्री पोस्ट करने वालों के खिलाफ कार्रवाई करने की बाध्यता नहीं
- आपत्तिजनक सामग्री हटाने और संबंधित अकाउंट पर कार्रवाई करने में नाकाम रहने पर इन साइटों पर जुर्माने का प्रावधान भी नही
- चुनाव आयोग ने टिकटॉक, हैलो, टेलीग्राम और वीचैट जैसे छोटे सोशल मीडिया एप पर नियंत्रण संबंधी दिशा-निर्देश नहीं जारी किए
अफवाहों के प्रचार-प्रसार का सबसे बड़ा माध्यम बने व्हॉट्सएप पर लगाम लगाने की दिशा में फेसबुक ने नहीं जताई कोई प्रतिबद्धता
गांव-कस्बों और छोटे शहरों में राजनीतिक ध्रुवीकरण पैदा करने में मददगार हो रहे ये एप, नए दिशा-निर्देश में इन्हें भी लाने की तैयारी