बीएड v/s बीटीसी सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई का ऑर्डर जारी;आर्डर में एक बात ये निकलकर आई है की इस मैटर को 12 अक्टूबर को सुनवाई के लिए लिस्ट कर दिया गया है..✔️✔️
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प्राथमिक शिक्षिका की मौत के 19 साल बाद अनाथ बच्चे को मिलेगी अनुकंपा नौकरी, सुप्रीम कोर्ट ने खारिज की यूपी सरकार की दलील
प्राथमिक शिक्षिका की मौत के 19 साल बाद अनाथ बच्चे को मिलेगी अनुकंपा नौकरी
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, अगर यह ‘गलत नजीर’ है तो गलत ही सही, यूपी सरकार की दलील को किया खारिजl
नई दिल्ली। पांच साल की उम्र में अनाथ हुए बच्चे को 19 वर्ष तक दर-दर भटकने के बाद आखिरकार देश की सबसे बड़ी अदालत ने न्याय दे दिया। सुप्रीम कोर्ट ने उसे अनुकंपा के आधार पर नौकरी देने का आदेश सुनाया।
जस्टिस हेमंत गुप्ता और जस्टिस विक्रम नाथ की पीठ ने उत्तर प्रदेश सरकार की उस दलील को खारिज कर दिया कि इतने वर्षों के बाद अनुकंपा के आधार पर नौकरी देना गलत नजीर बनेगा। पीठ ने कहा, अगर यह गलत नजीर है तो गलत ही सही। वर्षों तक जिन मुश्किल हालातों से बच्चों (आवेदक व उसकी बहन) को गुजरना पड़ा, उसे भलीभांति समझा जा सकता है। सुनवाई के दौरान पीठ ने यह भी पाया कि नाना के पास रह रहे इन बच्चों को शन समेत वित्तीय लाभों से 15 वर्ष से अधिक मय तक वंचित रखा गया। पेंशन व अन्य बकाया भी उन्हें 2019 में तब मिला, जब राज्य रकार के खिलाफ अवमानना याचिका दायर की गई।
पीठ ने कहा, यह तो राज्य सरकार के खलाफ जुर्माना लगाने का उचित मामला है। ज्य सरकार की ओर से पेश वकील द्वारा ार-बार जुर्माना नहीं करने के आग्रह पर सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार पर जुर्माना तो नहीं गाया लेकिन मानवीय दृष्टिकोण अपनाते हुए। संबंधित अथॉरिटी को दो महीने के भीतर गणेश शंकर शुक्ला ( याचिकाकर्ता) को शैक्षणिक योग्यता के आधार पर नौकरी देने का आदेश दिया है।
याचिकाकर्ता गणेश की पैरवी करने वाले वकील आशुतोष यादव ने दलील दी कि गणेश वर्ष 2015 में बालिग हुआ था और उसने 2016 में इंटरमीडिएट की परीक्षा पास की थी। बालिग होने के बाद उसको अनुकंपा के आधार पर नौकरी पाने के अधिकार के बारे में जानकारी प्राप्त हुई। उसके बाद उसने विभिन्न फोरम का दरवाजा खटखटाया।
कानपुर का है मामला
याचिका के मुताबिक गणेश की मां गीता देवी शुक्ला जिला रमाबाई नगर (कानुपर देहात) के एक प्राथमिक विद्यालय में सहायक शिक्षक थीं। 13 मार्च 2003 को गीता देवी की मृत्यु हो गई। उस वक्त गणेश की उम्र महज पांच वर्ष थी जबकि उसकी बहन आठ वर्ष की थी। पिता की मृत्यु पहले ही हो गई थी।
छोटी सी उम्र में अनाथ हुए बच्चों को नाना ने पाला पोसा। विभाग ने गीता देवी का बकाया /फंड याचिकाकर्ता को नहीं दिया। दिसंबर 2008 में याचिकाकर्ता की ओर से पेंशन / फंड रिलीज करने का संबंधित अथॉरिटी के पास अभ्यावेदन दिया गया लेकिन अथॉरिटी ने कुछ नहीं किया 2016 में ट्रिब्यूनल ने संबंधित अथॉरिटी ने परिवार पेंशन देने का आदेश दिया।
इस आदेश का पालन न होने पर अवमानना याचिका दायर की गई तब जाकर पेंशन जारी हुई लेकिन अनुकंपा पर नौकरी को लेकर उसे राहत नहीं मिली। इलाहाबाद हाईकोर्ट से भी राहत नहीं मिलने पर गणेश ने सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) दायर की।
बिग ब्रेकिंग न्यूज़ :- बीएड 2004-05 अवमानना प्रकरण माननीय सर्वोच्च न्यायालय, भारत सरकार के क्रम में उत्तर प्रदेश सरकार ने सभी याचियों को 1 जुलाई से वेतन देने का दिया आदेश। देखें आदेश
शिक्षामित्रों की सभी अपीलें खारिज 60/65 पर जारी परीक्षा परिणाम के आधार पर भर्ती करे सरकार,शिक्षा मित्रों को अगली भर्ती में मौका, खबर की सत्यता जानने के लिए क्लिक करें- सुप्रीमकोर्ट
#भर्ती69000- माननीय सुप्रीम कोर्ट द्वारा SLP( c)-6841/2020 राम शरण मौर्य अन्य बनाम उत्तर प्रदेश सरकार , के साथ टैग #उत्तीर्ण_अंक मामले की सभी याचिकाओं को #ख़ारिज(डिसमिस) कर दिया गया है।
माननीय हाई कोर्ट इलहाबाद की खंडपीठ लखनऊ द्वारा स्पेशल अपील-156/2019 में पारित आदेश ही प्रभावी रहेगा।
#उत्तीर्ण_अंक (40-45)% की मांग करने वाले अभ्यर्थियों की हार हुई है ।
#उत्तीर्ण_अंक 90-97(60-65%) पक्ष के अभ्यर्थियों की जीत हुई है।
आप सभी 67867 चयनित अभ्यर्थियों को हार्दिक बधाई एवम शुभकामनाएं 15से 20 दिन के अंदर आप सभी को नियुक्ति पत्र मिल जाएगा।।
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SHIKSHAMITRA : बिहार का समान कार्य समान वेतन का मामला अब तक इतिहास का सबसे महँगा और खर्चीला केस रहा फिर नतीजा जीरो
बिहार का समान कार्य समान वेतन का मामला अब तक इतिहास का सबसे महँगा और खर्चीला केस था। इस केस में इतना वकीलों की फीस गई जितना शायद किसी अफ़्रीकी देश का शिक्षा पर सालाना बजट हो।
2 साल की लंबी जंग और 42 दिन कोर्ट के कार्य दिवस की लगातार सुनवाई के बाद 3 oct को आदेश रिज़र्व हुआ था। अगस्त और सितम्बर मे लगातार कोर्ट 42 मैटर लागातार सुनी थी। फिर भी आदेश सिफर रहा
न्यायालय रोजगार के लिए पात्रता और आवश्यक योग्यता तय नहीं कर सकते : सुप्रीम कोर्ट
न्यायालय रोजगार के लिए पात्रता और आवश्यक योग्यता तय नहीं कर सकते: *सुप्रीम कोर्ट*
कोर्ट ने कहा कि न्यायिक समीक्षा की अपनी शक्ति का प्रयोग करते हुए एक न्यायालय यह तय नहीं कर सकता है कि नियोक्ता के लिए सबसे अच्छा क्या है।
Tet validity case mai yeh order kaam aayega.
उसी बेंच का आदेश है जहाँ अपना टेट वैलिडिटी मैटर चल रहा है। महादेव हमारे साथ है सब का कल्याण हो।
#Courts Cannot Decide Eligibility And Essential Qualifications For Employment: SC [Read Judgment] BY:
ASHOK KINI 5 May 2019 7:22 PM 1.5K SHARES “If the language of the advertisement and the rules are clear, the Court cannot sit in judgment over the same.” The Supreme Court observed that a Court, while exercising its power of judicial review, cannot decide what is best for the employer and interpret the conditions of the advertisement contrary to the plain language of the same. The essential qualifications for appointment to a post are for the employer to decide, said the bench comprising of Justice Arun Mishra and Justice Navin Sinha while setting aside a Bombay High Court order. Also Read – Supreme Court Weekly Round Up The High Court had, in the impugned order, interpreted an advertisement issued by Maharashtra Public Service Commission to hold that candidates possessing the requisite years of experience in research and development of drugs and testing of the same, are also eligible to be considered for appointment to the post of Assistant Commissioner (Drugs) and Drug Inspectors. Also Read – Reports About Justices Nariman And Chandrachud Meeting Justice Bobde Wholly Incorrect, Says SC Secretary General The court, observed that it is the employer who is best suited to decide the requirements a candidate must possess according to the needs of the employer and the nature of work. It said: “The employer may prescribe additional or desirable qualifications, including any grant of preference. The court cannot lay down the conditions of eligibility, much less can it delve into the issue with regard to desirable qualifications being at par with the essential eligibility by an interpretive re-writing of the advertisement. Questions of equivalence will also fall outside the domain of judicial review. If the language of the advertisement and the rules are clear, the Court cannot sit in judgment over the same. If there is an ambiguity in the advertisement or it is contrary to any rules or law the matter has to go back to the appointing authority after appropriate orders, to proceed in accordance with law” In this case, the bench observed the interpretation of the terms of the advertisement as made by the High Court both regard to the posts of Assistant Commissioner (Drugs) and Drug Inspectors cannot be upheld. The term “preference” mentioned in the advertisement cannot be interpreted to mean that merely because a candidate may have had the requisite experience of testing in a research and development laboratory he/she possessed the essential eligibility and had a preferential right to be considered for appointment, the court added. Read Judgment Topics : Supreme Court | Justice Arun Mishra | Justice Navin Sinha