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तैयारी : काम के हिसाब से वेतन देना होगा, केंद्र सरकार ‘कोड ऑन वेजेज’ कानून के तहत न्यूनतम वेतन देने के लिहाज से जरूरी बदलाव करेगी ।
वेतन संहिता में 9 घंटे काम के नियम पर ट्रेड यूनियनों को आपत्ति, कहा- मसौदा नियमों में विसंगतियां
नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। आरएसएस से संबद्ध भारतीय मजदूर संघ (बीएमएस) ने श्रम संहिता कानून के तहत दिन में 9 घंटे काम के प्रस्तावित नियम पर आपत्ति जताई है और वर्तमान के आठ घंटे से भी घटाकर इसे छह घंटे किए जाने की मांग की है। अन्य ट्रेड यूनियनें भी मसौदा नियमों से असंतुष्ट हैं और शीघ्र ही सरकार को अपनी आपत्तियों से अवगत कराएंगी।
मसौदा नियमों पर प्रतिक्रिया प्रकट करते हुए भारतीय मजदूर संघ (बीएमएस) के महामंत्री विरजेश उपाध्याय ने कहा कि मसौदा नियमों में अनेक विसंगतियां हैं, जिनमें संशोधन की जरूरत है। नए नियमों में पूर्व के उन कानूनी प्रावधानों की उपेक्षा की गई है जिन्हें वेतन संहिता में समाहित कर दिया गया है।
एक उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि मसौदा नियमों में काम के घंटों को लेकर कोई स्पष्टता नहीं है। काम के घंटे एक दिन में छह से ज्यादा नहीं होने चाहिए। इसके अलावा न्यूनतम वेतन संबंधी नियम भी अस्पष्ट हैं। नियमों में अकुशल कर्मचारी को अर्द्ध कुशल और अर्द्धकुशल को कुशल कर्मचारी के तौर पर उच्चीकृत करने का कोई प्रावधान नहीं है। जबकि किसी भी व्यवसाय में ये सामान्य सी बात है कि अकुशल कर्मचारी सीखते-सीखते कुछ समय बाद अर्द्धकुशल और अर्द्धकुशल कुछ समय बाद कुशल हो जाता है। नए कर्मचारी को कुछ नहीं मालूम होता है। वो धीरे-धीरे ही अपने काम में दक्षता हासिल करता है। बीएमएस मसौदा नियमों का अध्ययन कर रही है और दो-तीन रोज में विस्तृत सुझावों के साथ श्रम मंत्रालय से संपर्क करेगी।
कुछ इसी प्रकार के विचार आल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस (ऐटक) ने भी व्यक्त किए। ऐटक महासचिव अमरजीत कौर ने कहा कि मसौदा नियमों के तहत वर्क फिक्सेशन कमेटी में ट्रेड यूनियनों के प्रतिनिधित्व की कोई व्यवस्था नहीं की गई है। जबकि संहिता में समाहित चारों पुराने कानूनों में इसका प्रावधान है। वेतन की परिभाषा सही नहीं है। और भी कई खामियां हैं जिन पर हम सरकार को जल्द ही अपने विचारों से अवगत कराएंगे।
श्रम मंत्रालय ने 1 नवंबर,’19 को वेतन संहिता कानून से संबंधित नियमों का मसौदा जारी किया था और 1 दिसंबर,’19 तक इस पर लोगों से सुझाव देने को कहा था। वेतन संहिता विधेयक, 2019 अगस्त में संसद से पारित हुआ था।
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केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा परिषद (सीबीएसई) 10वीं और 12वीं की परीक्षाएं 15 फरवरी 2020 को प्रस्तावित हैं। वहीं प्रैक्टिकल परीक्षाएं 16 जनवरी से 15 फरवरी तक चलेंगी। सीबीएसई ने परीक्षाओं के 20 दिनों के भीतर परिणाम घोषित करने के लिए उत्तरपुस्तिकाओं के मूल्यांकन भी कराने का निर्णय लिया है।
परीक्षक और छात्रों के बीच सांठगांठ रोकने के लिए सीबीएसई ने इस बार प्रैक्टिकल परीक्षाओं के लिए भी सेंटर बनाने का निर्णय लिया है। वर्ष 2019 में सीबीएसई ने परीक्षा के सिर्फ 28 दिनों के भीतर रिजल्ट जारी कर दिया था। गत सत्र में सीबीएसई ने 10वीं का रिजल्ट दो मई और 12वीं का रिजल्ट छह मई को जारी किया था।
इस साल सीबीएसई समय सीमा को घटाकर परीक्षा होने के महज 20 दिनों के भीतर रिजल्ट जारी करने का लक्ष्य रखा है। परीक्षा और परिणामों के बीच समय कम करने के लिए सीबीएसई मूल्यांकन केंद्रों और मूल्यांकनकर्ताओं की संंख्या बढ़ाएगी। बोर्ड ऐसे केंद्रों की स्थापना की जाती है जो पूर्ण सुरक्षा और मूल्यांकन के क्रम को सुनिश्चित करते हैं।
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शिक्षक भर्ती में मान्य होना चाहिए एनआईओएस का डीएलएड कोर्स
शिक्षक भर्ती में मान्य होना चाहिए एनआईओएस का डीएलएड कोर्स
मानव संसाधन विकास मंत्रालय के पूर्व अधिकारी नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ओपन स्र्कूंलग (एनआईओएस) की ओर से कराए गए डीएलएड कार्यक्रम को शिक्षक भर्ती के लिए अमान्य करार देने के राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षण परिषद (एनसीटीई) के फैसले को गलत करार दे रहे हैं। इन पूर्व अधिकारियों का कहना है कि यह शिक्षण प्रशिक्षण का कोर्स मानव संसाधन विकास मंत्रालय के निर्देश पर कराया गया था, ऐसे में यह शिक्षक भर्ती के लिए अपने आप में पर्याप्त अर्हता है।
एनआईओएस के डीएलएड कार्यक्रम के समय मानव संसाधन विकास मंत्रालय में स्कूल शिक्षा सचिव रहे आईएएस अधिकारी अनिल स्वरूप ने इस मुद्दे पर हिन्दुस्तान से बातचीत में कहा कि अब मैं सरकार से बाहर हूं, इसलिए मेरा इस मुद्दे पर टिप्पणी करना ठीक नहीं रहेगा। फिर भी मेरा मानना है कि यह कोर्स मानव संसाधन विकास मंत्रालय के कहने पर शुरू किया गया था, इसलिए यह कोर्स शिक्षक भर्ती की जरूरी शर्तों को पूरा करने के योग्य है।
उठे सवाल
एचआरडी मंत्रालय के पूर्व अधिकारियों ने एनसीटीई के फैसले पर उठाए सवाल
कोर्स करने वाले 13 लाख शिक्षकों के भविष्य पर लटकी तलवार
अधिकारी ने कहा, एनसीटीई की गलती
एक अधिकारी ने कहा कि पूरे कार्यक्रम के दौरान इस बात जिक्र तो किया गया था कि यह सेवारत शिक्षकों के लिए है, लेकिन इस बात का कोई जिक्र नहीं किया गया था कि इस कोर्स को करने के बाद शिक्षक दूसरे स्कूलों में आवेदन नहीं कर पाएंगे। अधिकारी ने कहा कि यह एनसीटीई की गलती है।
कोर्स को अमान्य बताया
हाल ही में बिहार के निजी स्कूलों में पढ़ा रहे शिक्षकों ने जब सरकारी भर्ती के लिए आवेदन किया तो बिहार सरकार ने एनआईओएस के डीएलएड के बारे में राय मांगी कि क्या यह योग्यता शिक्षक भर्ती के लिए अर्ह है? इसके जवाब में एनसीटीई ने 18 महीने के डीएलएड कार्यक्रम को अमान्य करार दे दिया। इससे 13 लाख शिक्षकों के भविष्य पर तलवार लटक गई है।
18 महीने का कोर्स
डीएलएड कोर्स 18 महीने का है। यह उन 15 लाख शिक्षकों के लिए था, जो अप्रशिक्षित थे और शिक्षा के अधिकार कानून के चलते उनकी नौकरी जाने का खतरा मंडरा रहा था। एनआईओएस ने करीब 13 लाख शिक्षकों को यह कोर्स कराया था।