CTET में प्राथमिक स्तर में बीएड वालों के परिणाम जारी करने पर हाईकोर्ट की रोक

CTET में प्राथमिक स्तर में बीएड वालों के परिणाम जारी करने पर हाईकोर्ट की रोक

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सीबीएसई को केंद्रीय शिक्षक पात्रता परीक्षा (सीटीईटी) प्राथमिक स्तर में 2022 में शामिल बीएड डिग्रीधारकों के परिणाम जारी करने पर रोक लगा दी है। कोर्ट ने कहा कि बीएड डिग्री धारकों के परिणाम सुप्रीम कोर्ट में दाखिल विशेष अनुमति याचिका पर आदेश आने के बाद जारी किया जाए।

यदि परिणाम जारी किया जाता है तो वह विशेष अनुमति याचिका के आदेश के अधीन होगा। हाईकोर्ट अब इस मामले में चार सप्ताह बाद सुनवाई करेगा। यह आदेश न्यायमूर्ति आशुतोष श्रीवास्तव ने प्रतीक मिश्र व अन्य की याचिका पर दिया है।




याचिका में केंद्रीय पात्रता परीक्षा में बीएड डिग्रीधारकों के परिणाम जारी पर रोक लगाने की मांग की गई है। याचिका में कहा गया है कि राजस्थान हाईकोर्ट ने नेशनल टीचर्स काउंसिल फॉर एजुकेशन के 28 जून 2018 की अधिसूचना को रद्द कर दिया है। एनसीटीई ने 28 जून की अधिसूचना में सीटीईटी (प्राथमिक स्तर) में बीएड डिग्री धारकों को भी शामिल कर लिया था। इसे राजस्थान हाईकोर्ट में चुनौती दी गई थी।


राजस्थान हाईकोर्ट ने सुनवाई कर एनसीटीई की अधिसूचना रद्द कर दी। इसके बावजूद केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड द्वारा आयोजित केंद्रीय शिक्षक पात्रता परीक्षा प्राथमिक स्तर में बीएड डिग्री धारकों को शामिल किया गया, जो गलत है।

शिक्षकों की न्यूनतम योग्यता प्राप्त करने की अनिवार्यता खत्म करने की मांग, कोर्ट ने NCTE से मांगा जवाब

शिक्षकों की न्यूनतम योग्यता प्राप्त करने की अनिवार्यता खत्म करने की मांग, कोर्ट ने NCTE से मांगा जवाब

शिक्षकों की न्यूनतम योग्यता प्राप्त करने की अनिवार्यता को खत्म करने पर दिल्ली उच्च न्यायालय ने एनसीटीई से जवाब मांगा है। मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा और न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद की पीठ ने एनसीटीई को चार सप्ताह के भीतर हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया है।





पीठ ने गैर सरकारी संगठन जस्टिस फॉर आल की ओर से 2018 में दाखिल जनहित याचिका पर यह आदेश दिया है। याचिका में एनसीटीई की ओर से आरटीई अधिनियम लागू होने के 5 साल के भीतर देशभर के स्कूलों में मौजूदा शिक्षकों को न्यूनतम योग्यता प्राप्त करने की अनिवार्यता को खत्म किए जाने को चुनौती दी गई है।



पीठ ने मौखिक टिप्पणी में कहा कि संसद द्वारा बनाए गए कानून के प्रावधान को महज एक अधिसूचना जारी कर कैसे खत्म किया जा सकता है। शिक्षा की गुणवत्ता के मद्देनजर शिक्षकों को न्यूनतम योग्यता प्राप्त करनी चाहिए।



एनसीटीई की ओर से अधिवक्ता ने पीठ से इस बारे में अतिरिक्त हलफनामा दाखिल करने के लिए वक्त देने की मांग की। हालांकि मामले में पहले भी जवाब दाखिल कर चुके हैं। न्यायालय ने याचिकाकर्ता संगठन के वकील खगेश झा को भी अपना हलफनामा दाखिल करने को कहा है। इस मामले की अगली सुनवाई 13 जुलाई को होगी।

विशिष्ट बीटीसी-2004 मानदेय मामला, हाईकोर्ट ने मानदेय जारी करने का दिया आदेश

विशिष्ट बीटीसी-2004 मानदेय मामला, हाईकोर्ट ने मानदेय जारी करने का दिया आदेश

69000 भर्ती के अभ्यर्थियों ने हाईकोर्ट में दाखिल की याचिका, अधिसूचना से ठीक पहले जारी चौथी सूची से संतुष्ट नहीं आरक्षित वर्ग

परिषदीय प्राथमिक स्कूलों में 69000 सहायक अध्यापक भर्ती के अभ्यर्थियों ने आरक्षित वर्ग की गलत तरीके से 6800 पदों पर भर्ती प्रक्रिया रोकने की मांग लेकर सोमवार को हाईकोर्ट में याचिका दाखिल कर दी। 6800 पदों के लिए जारी चौथी सूची से असंतुष्ट ओबीसी और एससी अभ्यर्थियों का कहना है कि 69000 भर्ती में आरक्षित वर्ग की 19000 से अधिक सीटों पर घोटाला हुआ है लेकिन सरकार मात्र 6800 पदों पर घोटाला स्वीकार रही है, जो पूरी तरह गलत है।



याचिका दाखिल करने वाले मुनेश मौर्य का कहना है कि पूर्व बेसिक शिक्षा महानिदेशक विजय किरण आनंद तथा वर्तमान में बेसिक शिक्षा परिषद के सचिव प्रताप सिंह बघेल ने लखनऊ हाईकोर्ट में कहा था कि इस भर्ती में एक भी सीट पर घोटाला नहीं हुआ। जबकि सरकार ने आरक्षण घोटाला स्वीकार कर 6800 पदों की सूची जारी कर दी, जो खुद में बड़ा सवाल है। जब सरकार ने 6800 पदों पर आरक्षण घोटाला होना स्वीकार कर लिया है तो गलत तरीके से चयनित 6800 अभ्यर्थियों को बाहर क्यों नहीं किया जा रहा। अभ्यर्थी राजेश चौधरी के अनुसार सरकार ने 6800 पदों की चौथी सूची को लखनऊ हाईकोर्ट में लंबित महेंद्र पाल एंड अदर्स के अधीन रखा है। ऐसी स्थिति में जब तक महेंद्र पाल एंड अदर्स की याचिका पर लखनऊ हाईकोर्ट से कोई निर्णय नहीं आ जाता, तब तक सरकार आरक्षित वर्ग के अभ्यर्थियों को 6800 पद न दे तथा इस भर्ती प्रक्रिया को आगे न बढ़ाए। इस भर्ती में संविधान प्रदत्त ओबीसी को 27 तथा एससी को 21 आरक्षण के तहत क्रमश: 12000 तथा 3000 सीट और दी जाए अथवा लखनऊ हाईकोर्ट में जितने भी याची हैं उन सभी को लाभ दिया जाए, तभी यह मामला पूरी तरह समाप्त हो सकता है ।

Allahabad High court: अपर शिक्षा निदेशक और डीआईओएस पर चलेगा अवमानना का केस

कर्मचारी के एरिया का भुगतान न करना अपर शिक्षा निदेशक और जौनपुर के जिला विद्यालय निरीक्षक (डीआईओएस) को भारी पड़ा। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उनके खिलाफ आरोप तय करने का निर्णय लिया है। कोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई की तिथि तय करते हुए उन्हें हलफनामा दाखिल करने को कहा है।



जौनपुर में तैनात कर्मचारी सेराज की याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति जयंत बनर्जी की एकल पीठ ने कहा कि दोनों अधिकारियों ने कोर्ट के आदेशों का पालन नहीं किया। कोर्ट ने अपने फरवरी 2019 में दिए आदेश में कर्मचारी को ब्याज के साथ एरियर भुगतान का आदेश दिया था। जबकि आदेश का अनुपालन करने के लिए एक महीने का समय दिया गया था।

याची के अधिवक्ता एसबी सिंह ने कहा कि याची को मजबूरन अवमानना याचिका दाखिल करनी पड़ी। अवमानना याचिका की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने अपर शिक्षा निदेशक डॉ. महेंद्र देव को समय दिया लेकिन उन्होंने इसका पालन नहीं किया। सुनवाई के दौरान कोर्ट में अपर शिक्षा निदेशक डॉ. महेंद्र देव और जौनपुर के डीआईओएस राजकुमार पंडित मौजूद रहे।

सरकारी अधिवक्ता की ओर से तर्क दिया गया कि सरकार के 25 नवंबर 2021 के आदेश के तहत विभाग में वित्तीय भुगतान के लिए एक कमेटी गठित है। याची सेराज के एरियर का भुगतान भी कमेटी के जरिए किया जाएगा लेकिन कोर्ट ने सरकारी अधिवक्ता के तर्कों को नहीं माना और इसे अपनी अवमानना मानते हुए अगली तिथि पर आरोप तय करने का निर्णय लिया है।

Allahabad High Court ने निदेशक बेसिक शिक्षा व अपर मुख्य सचिव बेसिक के खिलाफ जारी किया जमानती वारंट

Allahabad High Court ने सर्वेंद्र विक्रम बहादुर सिंह निदेशक बेसिक शिक्षा और दीपक कुमार अपर मुख्य सचिव बेसिक की गिरफ्तारी के लिए जमानती वारंट जारी किया है। इन लोगों को 20 दिसंबर को हाजिर होने का निर्देश दिया गया है। यह आदेश न्यायमूर्ति अब्दुल मोईन ने रेखा सिंह की अवमानना याचिका पर दिया है।

कोर्ट के सामने पेश नहीं हुए अधिकारी
कोर्ट ने 8 नवंबर को 21 सितंबर को जारी आदेश का पालन करने का आदेश दिया था और कहा था कि यदि आदेश का पालन नहीं किया गया तो दोनों अधिकारी हाजिर हों। विपक्षी अधिवक्ता नितीश यादव का नाम काज लिस्ट में छपा है। फिर भी वे विपक्षियों की तरफ से कोर्ट में नहीं आये और न विपक्षी अधिकारी ही हाजिर हुए।

जिस पर कोर्ट ने जमानती वारंट जारी कर अधिकारियों को तलब किया है। कोर्ट ने मृतक आश्रित कोटे में नियुक्ति की अर्जी दाखिल करने में देरी की माफी पर निर्णय लेने का आदेश दिया था। बीएसए ने 24 अगस्त को निदेशक को संस्तुति भेजी थी। कोर्ट ने आदेश पालन का मौका दिया। फिर भी कोई जानकारी नहीं दी गई और न ही अधिकारीयों की तरफ से कोई हाजिर हुआ।