(सूची को रद्द न करते हुए उसे रिविजिट किया जाए…रिविजिट करने का कारण दोहरा आरक्षण को रखा गया है,एक बार जिन्होंने ATRE परीक्षा मे आरक्षण ले लिया है उन्हे चयन सूची बनाते समय आरक्षित वर्ग मे हि रखा जाए उन्हे अनारक्षित पद पर नही रखा जाएगा)
6800 चयन सूची को रद्द कर दिया गया है।
(इस चयन सूची का कोई वैधानिक आधार नहीं सिद्ध हो पाया।)
चयनित को न छेड़ता हुए 3 माह के अंदर पुनः लिस्ट विधि सम्मत संसोधित करेगी सरकार।
हाई कोर्ट लखनऊ
69000 शिक्षक भर्ती पर सुप्रीम आर्डर
पूरी लिस्ट फिर से बनेगी , जो बाहर होगा उस पर सरकार पालिसी के तहत निर्णय ले,6800 लिस्ट रद्द,3 माह में पूरी प्रक्रिया करने का निर्देश
6800 बहुप्रतीक्षित आदेश
⛔️ दोहरा आरक्षण खारिज
👉 6800 रद्द
67867+6696 सूची को 3 महीने में पुनरीक्षण कीजिये।
जो सहायक अध्यापक कार्य कर रहे हैं उनको बिना डिस्टर्ब किए
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69000 शिक्षक भर्ती उच्च न्यायालय एकल पीठ :–
6800 की सूची रद्द , ATRE में जिन्होंने आरक्षण का लाभ लिया है, उन्हें पुनः आरक्षण का लाभ नहीं, 69000 की दोनों चयन सूचियों को आरक्षण नियमावली के प्रावधानों के अनुसार रिवाइज करें इस कार्य के होने तक कार्यरत शिक्षकों को डिस्टर्ब नहीं किया जायेगा । तीन माह के अंदर 69000 की नई चयन सूची तैयार करे विभाग , जो वर्तमान में चयनित चयन सूची में न आये उस पर नियमावली के प्रावधानों के अनुसार राज्य सरकार निर्णय ले।
उत्तर प्रदेश के प्राथमिक स्कूलों में 69000 सहायक शिक्षकों की भर्ती मामले में एक नया मोड़ आ गया। इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ के समक्ष हाल ही में राज्य सरकार द्वारा जारी 6800 अभ्यर्थियों की अतिरिक्त चयन सूची को चुनौती दी गई है। कोर्ट ने कहा कि वर्ष 2018 में विज्ञापित 69 हजार रिक्तियों के अतिरिक्त बगैर विज्ञापन के एक भी नियुक्ति नहीं की जा सकती है। राज्य सरकार ने बीती 5 जनवरी को 6800 अभ्यर्थियों की एक अतिरिक्त चयन सूची जारी करने का निर्णय किया था, जिसको लेकर फिर मामला कोर्ट पहुंच गया।
न्यायमूर्ति राजन रॉय ने यह अंतरिम आदेश भारती पटेल व 5 अन्य अभ्यर्थियों द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया। कोर्ट ने पहली नजर में देखा कि चूंकि सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट रूप से निर्देश दिया है कि 69000 से अधिक की कोई भी रिक्ति जो एक दिसंबर 2018 को विज्ञापित नहीं की गई थी, को भरने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। इसलिए किसी भी परिस्थिति में विज्ञापित किए गए 69000 से अधिक किसी को नियुक्त नहीं किया जा सकता है। कोर्ट ने कहा कि अब यह राज्य को तय करना है कि उसे इस मामले में क्या करना है। क्योंकि यह दिलचस्प स्थिति राज्य ने पैदा की है। लेकिन एक बात बहुत स्पष्ट है कि 69000 रिक्तियों से अधिक एक भी नियुक्ति नहीं की जा सकती है। अतिरिक्त नियुक्तियों पर रोक लगाते हुए कोर्ट ने वर्तमान मामले की ‘पेंडेंसी’ के बारे में दो प्रमुख अखबारों प्रकाशन कराने का भी निर्देश दिया है। क्योंकि इसमें काफी लोगों का हित शामिल है।
यह है मामला प्रदेश में सहायक शिक्षकों की 69000 रिक्तियों का विज्ञापन 2018 में किया गया था। परीक्षा 2019 में हुई। यह मामला इलाहाबाद उच्च न्यायालय से लेकर सर्वोच्च न्यायालय तक कई बार जा चुका है। इस बार राज्य सरकार द्वारा जारी 6800 उम्मीदवारों की अतिरिक्त चयन सूची को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट के समक्ष एक याचिका दायर की गई है। इसमें याचियों ने इस सूची को कानून की मंशा के खिलाफ कहा है।
राज्य सरकार ने दी यह दलीलराज्य सरकार की तरफ से महाधिवक्ता राघवेंद्र सिंह ने कोर्ट के समक्ष कहा कि इस अतिरिक्त चयन सूची को जारी करने का कारण यह है कि कुछ आरक्षित श्रेणी के उम्मीदवारों ने इस न्यायालय के समक्ष याचिका दायर की थी, जिसमें इस न्यायालय द्वारा कुछ आदेश पारित किए गए थे। जिसके आधार पर राज्य ने आरक्षण के अमल पर फिर से विचार किया। नीति के साथ-साथ आरक्षण अधिनियमए 1994 के प्रावधान सही से लागू न होने के कारण ऐसे आरक्षित श्रेणी के उम्मीदवार जो अन्यथा मेधावी हैं, अर्थात उन्होंने सामान्य श्रेणी के लिए कटऑफ से अधिक अंक प्राप्त किए हैं वो नियुक्ति पाने से रह गए थे। महाधिवक्ता ने आगे कहा कि तदनुसार राज्य सरकार ने मामले पर फिर से विचार करने के बाद 6800 अभ्यर्थियों के नाम वाली एक अतिरिक्त नई चयन सूची जारी करने का निर्णय किया जो आरक्षित श्रेणी के अभ्यर्थी हैं। जिन्होंने अनारक्षित श्रेणी के लिए कटऑफ से अधिक अंक प्राप्त किए हैं। चूंकि यह इसी न्यायालय द्वारा पारित आदेशों के परिणाम में किया गया है इसलिएए इस स्तर पर कोर्ट को मामले में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।
इस पर कोर्ट ने महाधिवक्ता से पूछा कि अगर 69000 पद पहले ही भरे जा चुके हैं तो इन 6800 को किस पद पर नियुक्त किया जाएगा? क्या एक पद के खिलाफ दो व्यक्ति काम कर सकते हैं और वेतन प्राप्त कर सकते हैं? इस मामले में महाधिवक्ता कोर्ट को संतुष्ट नहीं कर सके लेकिन कहा कि राज्य ने पहले से नियुक्त उन अभ्यर्थियों को बाहर करने का कोई निर्णय नहीं किया है जिन्होंने इन 6800 उम्मीदवारों से कम अंक प्राप्त किए होंगे। निजी प्रतिवादियों की तरफ से पेश हुए वकीलों ने भी सूची का बचाव करते हुए कहा कि उन्हें सामान्य श्रेणी के उम्मीदवारों के लिए मेधावी होने के कारण नियुक्त किया जाना चाहिए और पहले नियुक्त किए गए लोगों को हटा दिया जाना चाहिए। कोर्ट ने उक्त अंतरिम आदेश देकर मामले के संबंधित पक्षकारों को नोटिस जारी किया है। साथ ही मामले की अगली सुनवाई 18 फरवरी को नियत कर इस बीच पक्षकारों को अपना पक्ष पेश करने का मौका भी दिया है।
“अब, यह राज्य को तय करना है कि उसे इस मामले में क्या करना है क्योंकि यह राज्य है जिसने यह स्थिति पैदा की है लेकिन एक बात बहुत स्पष्ट है कि ऐसे पदों पर 69000 रिक्तियों से अधिक व्यक्तियों को नियुक्त नहीं किया जा सकता है।
किसी भी परिस्थिति में, 69000 से अधिक रिक्तियों, जो 01.12.2018 (एटीआरई 2019) को विज्ञापित की गई थीं, को नियुक्त नहीं किया जाएगा और बिना विज्ञापन के रिक्तियों को विज्ञापित और चयन के बिना नहीं भरा जाएगा।”
क्या है पूरा मामला?
उत्तर प्रदेश में सहायक शिक्षकों की 69000 रिक्तियां, जिसका विज्ञापन 2018 में किया गया था, कई बार विवादों का केंद्र रही है। यह इलाहाबाद उच्च न्यायालय से लेकर सर्वोच्च न्यायालय तक कई मुकदमों से गुजर चुका है।इस बार राज्य सरकार द्वारा जारी 6800 उम्मीदवारों की अतिरिक्त चयन सूची को चुनौती देते हुए लखनऊ में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के समक्ष एक रिट याचिका दायर की गई है।
राज्य सरकार ने न्यायालय के समक्ष कहा कि इस अतिरिक्त चयन सूची को जारी करने का कारण यह है कि कुछ आरक्षित श्रेणी के उम्मीदवारों ने इस न्यायालय के समक्ष याचिका दायर की थी, जिसमें इस न्यायालय द्वारा कुछ आदेश पारित किए गए थे, जिसके आधार पर, राज्य ने आरक्षण के कार्यान्वयन पर फिर से विचार किया है। नीति के साथ-साथ आरक्षण अधिनियम, 1994 के प्रावधान सही से लागू न होने के कारण, ऐसे आरक्षित श्रेणी के उम्मीदवार जो अन्यथा मेधावी हैं, जिसका अर्थ है, उन्होंने सामान्य श्रेणी के लिए कट-ऑफ से अधिक अंक प्राप्त किए हैं, वो नियुक्ति से रह गए है ।
महाधिवक्ता ने आगे कहा कि तदनुसार, राज्य सरकार ने मामले पर फिर से विचार करने के बाद 6800 उम्मीदवारों के नाम वाली एक अतिरिक्त नई चयन सूची जारी करने का निर्णय लिया है, जो आरक्षित श्रेणी के व्यक्ति हैं जिन्होंने अनारक्षित श्रेणी के लिए कट-ऑफ से अधिक अंक प्राप्त किए हैं और चूंकि यह अभ्यास इसी न्यायालय द्वारा पारित आदेशों का परिणाम है, इसलिए, इस स्तर पर न्यायालय को मामले में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।
हालांकि कोर्ट ने एडवोकेट जनरल से सवाल किया कि अगर 69000 पद पहले ही भरे जा चुके हैं, तो इन 6800 चयनकर्ताओं को किस पद पर नियुक्त किया जाएगा, और क्या एक पद के खिलाफ दो व्यक्ति काम कर सकते हैं और वेतन प्राप्त कर सकते हैं?
इस मामले में महाधिवक्ता हाई कोर्ट को संतुष्ट नहीं कर सके, लेकिन कहा कि राज्य ने पहले से नियुक्त उम्मीदवारों को बाहर करने का कोई निर्णय नहीं लिया है, जिन्होंने इन 6800 उम्मीदवारों से कम अंक प्राप्त किए होंगे।निजी प्रतिवादियों का प्रतिनिधित्व करने वाले वकीलों ने भी सूची का बचाव करते हुए कहा कि उन्हें सामान्य श्रेणी के उम्मीदवारों के लिए मेधावी होने के कारण नियुक्त किया जाना चाहिए और पहले नियुक्त किए गए लोगों को हटा दिया जाना चाहिए।
हाई कोर्ट ने क्या कहा
न्यायमूर्ति राजन रॉय ने प्रथम दृष्टया देखा कि चूंकि सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट रूप से निर्देश दिया है कि 69000 से अधिक की कोई भी रिक्ति जो 01.12.2018 (एटीआरई-2019) को विज्ञापित नहीं की गई थी, को भरने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए, इसलिए, किसी भी परिस्थिति में, विज्ञापित किए गए 69000 से अधिक में नियुक्त किया जा सकता है।
कोर्ट ने कहा कि यह विकट स्थिति राज्य द्वारा बनाई गई है और अब, यह राज्य को तय करना है कि उसे इस मामले में क्या करना है क्योंकि यह राज्य है जिसने यह स्थिति पैदा की है लेकिन एक बात बहुत स्पष्ट है कि 69000 रिक्तियों से अधिक एक भी नियुक्ति नहीं की जा सकती है।अतिरिक्त नियुक्तियों पर रोक लगाते हुए, कोर्ट ने प्रमुख समाचार पत्रों में वर्तमान मामले की पेंडेंसी के बारे में प्रकाशित करने का निर्देश दिया है क्योंकि इसमें काफी लोग का हिट शामिल है और आगे की सुनवाई के लिए 18 फरवरी 2022 की तारीख तय की है
परिषदीय प्राथमिक स्कूलों में 69000 सहायक अध्यापक भर्ती के अभ्यर्थियों ने आरक्षित वर्ग की गलत तरीके से 6800 पदों पर भर्ती प्रक्रिया रोकने की मांग लेकर सोमवार को हाईकोर्ट में याचिका दाखिल कर दी। 6800 पदों के लिए जारी चौथी सूची से असंतुष्ट ओबीसी और एससी अभ्यर्थियों का कहना है कि 69000 भर्ती में आरक्षित वर्ग की 19000 से अधिक सीटों पर घोटाला हुआ है लेकिन सरकार मात्र 6800 पदों पर घोटाला स्वीकार रही है, जो पूरी तरह गलत है।
याचिका दाखिल करने वाले मुनेश मौर्य का कहना है कि पूर्व बेसिक शिक्षा महानिदेशक विजय किरण आनंद तथा वर्तमान में बेसिक शिक्षा परिषद के सचिव प्रताप सिंह बघेल ने लखनऊ हाईकोर्ट में कहा था कि इस भर्ती में एक भी सीट पर घोटाला नहीं हुआ। जबकि सरकार ने आरक्षण घोटाला स्वीकार कर 6800 पदों की सूची जारी कर दी, जो खुद में बड़ा सवाल है। जब सरकार ने 6800 पदों पर आरक्षण घोटाला होना स्वीकार कर लिया है तो गलत तरीके से चयनित 6800 अभ्यर्थियों को बाहर क्यों नहीं किया जा रहा। अभ्यर्थी राजेश चौधरी के अनुसार सरकार ने 6800 पदों की चौथी सूची को लखनऊ हाईकोर्ट में लंबित महेंद्र पाल एंड अदर्स के अधीन रखा है। ऐसी स्थिति में जब तक महेंद्र पाल एंड अदर्स की याचिका पर लखनऊ हाईकोर्ट से कोई निर्णय नहीं आ जाता, तब तक सरकार आरक्षित वर्ग के अभ्यर्थियों को 6800 पद न दे तथा इस भर्ती प्रक्रिया को आगे न बढ़ाए। इस भर्ती में संविधान प्रदत्त ओबीसी को 27 तथा एससी को 21 आरक्षण के तहत क्रमश: 12000 तथा 3000 सीट और दी जाए अथवा लखनऊ हाईकोर्ट में जितने भी याची हैं उन सभी को लाभ दिया जाए, तभी यह मामला पूरी तरह समाप्त हो सकता है ।
69000 शिक्षक भर्ती: चयनित 6800 में किसी अभ्यर्थी का आवेदन प्रिंट, रजिस्ट्रेशन प्रिंट, एडमिट कार्ड खो गया है तो लिंक पर क्लिक करके निम्न वेबसाइट पर जाकर प्राप्त कर सकते हैं 🔴Important information for counseling 🔴
(69000 शिक्षक भर्ती परीक्षा) किसी परीक्षार्थी का #(application form)आवेदन प्रिंट #(registration form)रजिस्ट्रेशन प्रिंट #(admit card) एडमिट कार्ड खो गया है